23 January, 2014

वसीयत-शबनम शर्मा

नन्द किशोर का संपन्न परिवार था पति-पत्नि व दो बच्चे । पिछले ही वर्ष उनकी पत्नि स्वर्ग सिधार गई । बेटा बाहर नौकरी करता था । बहू भी बेटे के साथ रहती थी । पत्नि के जाने के बाद नन्द किशोर की तबियत ढीली रहने लगी । खाने-पीने को भी मन नहीं होता था, परन्तु उनकी बेटी नीरू माँ के मरते ही जैसे सयानी सी हो गई थी । बार-बार बाबूजी से कुछ खा पी लेने का आग्रह करती, कपड़े सदैव धोकर देती । रात-रात भर जागती व समय पर दवाई देना कभी न भूलती । इस बीच नन्द किशोर की हालत बिगड़ गई, उन्होंने बेटे को बुलावा भेजा, फोन किया परन्तु वो नहीं आया । उस रात तो हद ही हो गई । नन्द किशोर का दम घुटा जा रहा था । बिस्तर से उठने में असमर्थ । नीरू ने सहारा देकर उठाया । गर्म पानी की बोतल दी । उनका थूक साफ किया व पास ही कुर्सी पर बैठे सारी रात निकाल दी । बेटे को दो फोन किये परन्तु छुट्टी नहीं है कह कर टाल गया । नन्द किशोर कुछ स्वस्थ हुए तो उन्होंने वकील को बुलाया व कागज़ात बदल दिये व चैन की साँस ली ।

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