23 January, 2014

एक अनाम संबंध- नारायणी

थी  मैंने घर के सब दरवाजे बन्द कर दिये थेपरदे लगा दिये थे,कूलर चल रहा था  खाने पीने का तथा अनेकानेक घर के अन्य कामों को निपटाकर मसालेदार फिल्मी पत्रिका लेकर लेटी तो याद आयाटी वी में खूब नई चटपटी पिक्चर आनेवाली थी  यों तो हम लोग पुस्तक,पत्रिकाओं पर व्यर्थ पैसा खर्च नहीं करते पर कभी कभार मैं फिल्मी पत्रिका या महिलाओं की पत्रिका खरीद लेती हूं
अलस भाव से पिक्चर की प्रतीक्षा करते साबुनमंजन के विज्ञापन देखते पत्रिका के पृष्ठ पलट रही थी कि जोरों से कॉलबेल बज उठी  लेटे-लेटे ही पूछा कौन है ताकि कोई अवांछित व्यक्ति हो तो लौटा दूं पर कोई उत्तर न मिलाबल्कि दुबारा वही घंटी की आवाज आई  बडे अनमने से उठकर द्वार खोलादेखकर जानते हुये भीकुढक़रमुडक़र कहा-  ''क्या है?''
''जीचाय हैबडी क़डक जायकेदारआप एक बार इस्तेमाल करके देखें।'' उसने विनीत स्वर में कहा,
''
नहीं चाहियेदुपहरी में भी चैन नहींजब देखोपहुंच जायेगीहमारी हमदर्द बनकर।''
मेरे बडबडाने का कोई असर नहीं,  ''मॅडम आप एक बार लेकर तो देखिये... क़ुछ भी लीजियेबडा पेकेट हैछोटे भी हैंहर पेकेट के साथ-साथ गिफ्ट है... देखिये कितनी सुन्दर प्लेट हैपीछे के ब्लाक में सबने दो-दोतीन-तीन लिये हैं''
''मुझे नहीं चाहिये कहा तो पर मेरा भी मन ललचा उठा थामन को समझाते हुये दृढता से कहा, 
''
जिस ब्राण्ड की चाय हम वर्षों से पी रहे हैंतुम्हारे लिये क्यों छोड दें।''
''
जी कुछ तो ले लीजिये''
''
जब इतने घरों में बेच चुकी हो तो एक मेरे ही न लेने से क्या हो जायेगा कहते हुये मैंने जोर से द्वार बन्द किया।''
ऐसे ही करना पडता हैकभी चिढक़रकभी बिगडक़रकभी हंसकर  तीन चार दिन बीते होंगेमैं कहीं बाहर जाने की तैयारी में थी  मुझे देर हो चुकी थीअतः जो भी हो उससे जल्दी ही क्षमा मांगना होगी  कौन होगा सोचते हुये द्वार खोला तो बडे से जूट के झोले में झांकते हुये साबुन पाउडर के डब्बों के पास थकी- थकी बैठी थी वही सेल्स गर्ल 
अब इनसे बहस करनी पडेग़ीबारबार कहूंगी कि मुझे नहीं चाहिये और ये है कि टलने का नाम नहीं लेंगी। मेरे दो रूपये बचाने का पुण्यकार्य जो करना है इन्हें  मैंने जोर देकर कहा - ''आप जाइयेमुझे साबुन पाउडर नहीं चाहिये''  वह विनयपूर्ण जिरह करती रही कि उसका साबुन सबसे सस्ता भी पडेग़ाकपडे भी खूब साफ हो जायेंगे
मैंने खीझ कर कहाइतनी गर्मी में पैदल घर-घर घूम रही हो,  तुम कोई काम और क्यों नहीं कर लेती?
''जी मुझे घर-घर जाना है इसलिये कोई सवारी भी तो ले नहीं सकती,देखिये मेरी लिस्ट देखियेयहां कितने घरों में गई हूंसब गृहिणियों के नाम लिखें हैं
''
''और देखिये नौकरी के लिये प्रयत्न भी कर रही हूंकई जगह आवेदन किया है।'' 
कई सेल्स गर्ल्स आया करती थी जिन्हे टालने के लिये मैं तरह-तरह के नुस्खे आजमाया करती
कभी किसी से कह दियाअभी लिया हैंकिन्तु तब उनका आग्रह होताछूट और उपहार लेने के लिये लेने का।  सामने न पडी तो कहला दिया कि मैं घर में नहीं हूं।  इससे पहचान हो गयी थीकई बार आ चुकी है सलौनी छरहरी सी लडक़ी बाईस तेईस ही आयु रही होगी। प्रायः ढीला ढाला - प्रिन्ट का खादी का सलवार सूट पहने रहतीउसी प्रिन्ट की चुन्नी ओढती जिसमें पीछे गांठ डाल लेती।  कन्धों से नीचे तक के बाल क्लिप में बंधे रहते। कुछ लेने का आग्रह इतना तीव्र रहता कि अस्वीकार कठिन हो जाता।  पर करना भी पडता है।  हम भी तो क्या करें किसी की खुशी के लिये व्यर्थ में साबुनक्रीम आदि कहां तक लेंहमारा भी तो सीमित बजट हैंमैं अपने को सांत्त्वना देती हूं।
और ये जिन्हें हम सेल्स गर्ल्स कहते हैं अठारह से अडतालिस वर्ष तक की महिलाऐंकन्धों पर बेग लटकाये कभी किसी कम्पनी का कभी किसी कम्पनी का माल ले कर घर में बेखटक बेचने चली आती है,साबुनचायक्रीममंजनअगरबत्तीप्रसाधन की विविध वस्तुयें और न जाने क्या क्या ले कर जिन्हें कभी बिगड क़रकभी उदासीन हो कर,कभी हंस कर मना करना पडता हैकभी कभी उनके गिफ्ट का प्रलोभन इतना तीव्र होता है कि सारी फटकारसारा निश्चय धरा रह जाता है
प्रथमबार उस नवयौवना से झुर्रियां मिटाने की क्रीम लेने का अनुरोध सुन आघात लगा था वैसे ही जैसे दीदीभाभी सुनने के आदी कानपति के नौजवान सहकर्मी से अपने लिये आंटी सुनना  पहला झटका आघात लगता है फिर तो हम उसके आदी हो जाते हैं
मेरी छोटी बेटी यूनिवर्सिटी गई हुयी थीबेटा अपनी नई नई पोस्टिंग पर दूसरे शहर मेंबडी ससुराल मेंफिर भी-
उस पर रोष हो आयाफटकार दिया था
  ''आंटीआप ले कर तो देखिये.. प्रतिष्ठित कंपनी की है'' उसके विनय पर या क्रीम पर मन ललचा गया''तुम दीदी कह लो मुझे...  यह आंटी वांटी पसंद नहीं,  ...और देखो ऐसे कहो कि इससे त्वचा में निखार आयेगा  ..ये सही है''
वह हर्षित हो गयी थीदीदी बडी शीशी ले लीजियेउनके साथ प्लास्टिक का जार मुफ्त मिलेगा और दीदी कुछ नहीं
पैसे लेकर उसने कागज आगे कर दियानाम पता सब लिखना था तब से वह कभी कभी आया करती  एक बार कागज देखते पढते चकित हो कर कहा था, ''अरे क्या लीला मास्टरनी के घर भी गयी थीतीन घर आगे तिमंजिले पर....क्या क्या लिया उन्होंने?''
''नेलपालिश और लिपिस्टिक़.... साबुन भी  यह सब वह क्या करेगीसादी वेशभूषाहल्के प्रिंट की सफेद जमीन की सूती या अधिकतर सिंथेटिक साडियां पहनने वाली तुम्हारी आंटी अधिक से अधिक एक साबुन या शैम्पू ले लेगी''
'' मुझे भी जिज्ञासा हुई थी
''  उसने कहा था। 
''जिज्ञासा
''  यह सेल्स गर्लयह दर-दर सामान बेचने वाली लडक़ी जिज्ञासा कह रही है जैसे कोई बडी विदुषी हो। मैंने व्यंग से कहा, ''अच्छा तुम्हें जिज्ञासा हुईक्यों?''
''यही कि आंटी क्या करेगी इन सब श्रृंगार प्रसाधनों का 
''
फिर एक दिन साहस कर के पूछ लिया कि ''आंटी आप सब किसके लिये लेती हैंघर में कोई और मेरी दीदी या भाभी?''
वह हंसी थीमैं संकुचित हो उठी थीफिर कहा -
''आप तो इन को प्रयोग में नहीं लातीकिसी से पूछा हैं?'' मैं आम बोली में यूज या इस्तमाल की अभ्यस्त थीएक मामूली साबुनमंजन बेचने वालीघर-घर घूमनेवाली ऐसे शब्दों का प्रयोग करेंमुझे कुछ विचित्र सा लगा।
आंटी ने कहा था, ''वह अपने लिये नहीं लेतीउनकी भांजीभतीजियां हैं उन्हें उपहार दे देती हैं'' पर जब भी मैं जाती हूंवह सदैव कुछ न कुछ ले लेती हैकभी खाली हाथ नहीं लौटाती
मुझे हीनता सी लगीकहा - ''अच्छा हैतुम्हारा बडा ख्याल रखती है तभी न तुम काफी देर तक वहां बैठी रहती होवैसे तुम्हे घर-घर जाते डर नहीं लगता? ''
''सबके घर अंदर नहीं जातीबाहर से ही बुला लेती हूं''
''आंटी बैठने को कहती हैउनके पास बहुत सारी पुस्तकें हैंदो-एक अच्छी पत्रिकाएं भी रहती हैं
''
मेरी हाथ में सस्ती मनोरंजन की पत्रिका थीमुझे उसका कथन चुभन सा लगा। 
मुझे चिढाना हुआ सा लगा तभी वह बोली, ''आंटी मुझे पढने को भी देती हैं
''
''अच्छा 
''  मुझे इर्ष्या ने आ घेरापूछा - ''घर ले जाने को भी देती हैं? ''
''जी हां''
''इतना विश्वास है? ''
'' जीआंटी बहुत अच्छी हैं
'' 
जिसके घर न कोई उत्सवन कोई आनेवाला न जानेवालाजिसे मनहूस समझते हैं हमउसकी स्तुति कर रही हैं  कुढक़र कहा-''उनको करना ही क्या हैअपने आगे पीछे कोई दिखता नहींआगे नाथ न पीछे पगहाबस जो मिल गया उसी को एक प्याली चाय की लालच दे बैठा लेंगीआखिर समय बिताने कोई साथ तो चाहिये न। रिश्ते के लोग दूरी रखते होंगेकहीं बुढापे में उन पर भार न बन जायें''
''दीदीकई लोग तो एक घूंट पानी के लिये भी कह देंगेआगे जाओ नल लगा है.... घर में कोई है नहीं.... हमसे उठना नहीं होगा..... उन्हें डर रहता है कि वह पानी लेने जायेंहम कुछ उठा न लें ।''
वह तो जैसे मुझे दर्पण दिखा रही थी  अपना झोला समेट वह उठ खडी हुई। झोले में पालीथिन के बैग में दो पुस्तकें थीसस्ते उपन्यास होंगे और क्या पढेग़ी  देखा तो एक हजारी प्रसाद द्विवेदी का उपन्यास पुर्ननवा और दूसरी रामधारी सिंह दिनकर की कृति थी  संस्कृति के चार अध्याय
जिसको मैंने कितनी ही बार फटकार दिया थासमय असमय कालबेल बजाने परउसके काम की हंसी उडाते हुये कहा था - ''सब्जी भाजी बेचने आती है तो शान से खडी रहती हैंलेना हैं तो लो नहीं तो चलेंपर ये सेल्सगर्ल तो अडक़र ही बैठ जाती हैचाहे जैसे हो गांठ के पैसे लेकर ही छोडेग़ी'', वह सुनकर हंस दी थी, ''आप का विश्लेषण ठीक ही है दीदीपर हमारी नौकरी यही हैं ना''
आज सोचने लगी कैसी लगन हैंकैसे रूचि है इस लडक़ी की  पुर्ननवा - द्विवेदी जी का संस्कृतनिष्ठ इतिहास और पुराण समेटे गंभीर प्रकृति का उपन्यास जिसके दस बीस पृष्ठ भी हम नहीं पढ पाये और संस्कृति के चार अध्याय वह जैसे चार कहानियां पढ रही हो  संस्कृति के नाम पर हम कल्चरल प्रोग्राम नाचगान उछलकूद को ही जानते हैं
'इन्हें पढ लिया - कैसी लगी? ''
''
जीबहुत अच्छीआप पढ क़र देखिये न... आप कुछ लीजिये दीदी,जल्दी घर जाना चाहती हूं।'' 
''
घर या कहीं और.. ''  मैंने थाह लेनी चाही।  आज उसने चटक और नया सलवार कुर्ता पहना हुआ था। 
''
बहन के घर जाना हैभांजे का जन्मदिन हैं।'' 
''
तो एक दिन अपना भ्रमण छोड देती।''
वह विवशता भरी दृष्टि डाल कर चली गयी  कई महिने बीत गये वह सेल्स गर्ल नीरा नहीं आयी  दूसरी कई आती रही पर उनसे उसके विषय में कुछ ज्ञान न हो सकाआती तो प्रायः लौटाना पडता कभी चिढक़र कभी बिगडक़र कभी हंसकर
इस बीच लीला मास्टरनी बीमार पडी अपने तिमंजिले के घर से उतरती,रिक्शा ले डाक्टर के पास जातीपावभर दूध हमारा दूधवाला दे आता था  उससे ही मालूम हुआ कि मास्टरनी कभी कभी डबलरोटी मंगवा लेती है उससे  पडोस के फर्ज में देखने गईदूसरे नीरा उनकी प्रशंसा करती थीमेरा कौन सा नीरा से संबंध था पर कुछ था जो दोनों को बांध गया  मेरी देखा देखी पडोस की दूसरी महिलाएं निकली  जिगर के कैंसर की रोगिणी पर ईश्वर ने दया की थीवह अधिक समय दीन हीन अवस्था में पडी नहीं रही थी 
मकान मालिक सेल्स गर्ल नीरा की खोज में थे  उसे देख क्षणभर में कई विचार मन में उठें जिनमें प्रमुख थाक्या वह लीला के घर से कुछ चुरा ले गई थी जो उसके मृत्यु के बाद आई है 
उसे साथ ले तीसरे घर के तिमंजिले पर पहुंची हूं तमाशा देखनेकिन्तु स्तब्ध रह गईकाठ सा मार गया ''लीला मास्टरनी अपनी सब कुछ तुम्हारे  नाम कर गई हैहै ही क्याकिताबों भरी अलमारीएक पतली सी सोने की चेननन्हें नन्हें कानों के टाप्सघडीयह प्रिय पेडमेज,क़ुर्सीबैंक में कुछ रूपया  चेक पर हस्ताक्षर कर दिया था  क्रिया कर्म पर जो खर्च हो बीमारी में लगे उसमें से ले लिया जायजो बचे तुम्हारा है यह पत्र ही वसीयत हैहम तुम्हें खोज रहे थेअच्छा है तुम आ गई''
''इसमें उनके कपडे है जो न ले जाना चाहोगरीबों को बांट दो कहते हुये अलमारी का पट खोल दिया मकान मालकिन ने ''
अब तक काठ बनी नीरा अरे आंटी कहकर बिलख कर रो उठी है  उससे ली हुयी सभी वस्तुएं वहां करीने से रखी हुई थी  केवल उसका मन रखने के लिये आंटी ने कहा था कि उनके भतीजियां हैं
''है तो बेटे पर क्या वह इन मामूली वस्तुओं का प्रयोग करेगे? ''
स्टेटस् में रहने वाले भाई जिनके लिये लीला ने विवाह नहीं किया था,सूचना पा कर कह दिया सुविधा होगी तो आ जायेंगेजनरल वार्ड में भेज दें 
मैने बार बार रोती नीरा को अंक में समेट लिया,  आज उससे जाने को न कह सकूंगी न चिढक़ार न बिगडक़र न हंसकर

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