21 January, 2014

सारंगी वाला बाबा- जय वर्मा

अमिता एक लंबे अर्से से बराबर कुछ खोज रही थी। वह खोज किसी वस्तु या जगह की नहीं थी कि जिसके बारे में वह किसी से कुछ पूछ सकती। वास्तव में उसे खुद भी नहीं मालूम था कि वह क्या खोज रही थी? एक आवाज उसके कानों में नहीं, मस्तिष्क में गूंजती रहती थी। उसके अवचेतन मस्तिष्क में कुछ धुंधली स्मृतियां उसे रह-रह कर छू जाती थीं। अमिता को पियानों बजाने का बहुत शौक था। संगीत केवल उसकी अभिलाषा ही नहीं, आवश्यकता भी थी। पियानो का ट्यूटर उसे सिखाने के लिए घर पर आता था। कभी-कभी वह पियानों पर प्रसन्नता-सूचक स्वर बजाती और विस्मय करती कि उसके मन में किस बात की प्रसन्नता है।
यू.के. के माहौल में अमिता तीस वर्षों से रह रही थी। संजय के साथ शादी के तुरंत बाद ही वह यहां आ गयी थी। अब उनके दोनों बच्चे सिया और अबीर भी बड़े हो गये थे। अमिता को भारत से बड़ा लगाव था। इतने वर्षों के बाद भी वह इंग्लैंड में स्वयं को पूर्णतया बसा हुआ महसूस नहीं करती थी। उसके व्यवहार को लेकर समय-समय पर सभी चिंतित हो उठते। अमिता स्वयं इस बारे में असहाय एवं मजबूर थी। उसके पति संजय भी बच्चों के साथ मिलकर अमिता को समझाते। जिंदगी की भागदौड़ में अमिता काफी व्यस्त रहती। परन्तु कभी-कभी खाली समय में वह उदास हो जाती और सोचती कि उसके साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है? इंग्लैंड में बसने के लिए तो लोग अपने जीवन में क्या-क्या समझौते करते हैं। किंतु चित्त पर किसका वश चलता है। मधुमती और महल जैसे चलचित्र की तरह वह मस्तिष्क की उस अनुगूंज को पाना चाहती थी।
अपनी बेटी सिया की शादी के समय मां छटपटा कर रह गई थी, जब उसने अपने पति विकास के साथ भारत में शादी के स्वागत समारोह के लिए जाने से साफ मना कर दिया था। मां की भावनाओं को उसने समझने की कोई कोशिश नहीं की थी। 150 घरों वाला छोटा सा गांव माखर मेरठ से करीब 20 मील दूर था। अमिता का जन्म इसी गांव में हुआ था, जहां अब भी उसके माता-पिता रहते हैं। अमिता केवल 10 वर्ष की थी तब से उसका नाता इस गांव से महज औपचारिक सा रह गया था। लड़कियों के लिए पढ़ाई की ठीक व्यवस्ता न होने के कारण वह अपने चाचा-चाची के पास मेरठ पढ़ने के लिए चली गयी थी। आरंभ में कुछ दिनों तक तो वह हर छुट्टियों में मां और पिताजी से मिलने घर चली आती थी। पढ़ाई, शादी और फिर यू.के.। उसका जीवन पूरी तरह से बदल गया था। किंतु बचपन के दिन कहां भूलते हैं! लगभग 50 साल पहले, मेरठ से माखर का कच्चा रास्ता नहर के किनारे-किनारे जाता था, जिस पर केवल बैलगाड़ी और ट्रैक्टर ही जा सकते थे। किंतु अब तो पक्की सड़क बन चुकी है और नहर पर पक्का पुल भी, जिस पर मोटर बाईक ही नहीं, कारें भी दौड़ती हैं। गांव अब पहले जैसा गांव नहीं रहा। गुरुकुल तो पास के गांव में था ही, अब मेरठ रोड पर एक प्राइवेट स्कूल भी खुल गया है जिसमें वाजिदपुर, सिरसली और आस-पास के गांव से बच्चे अंग्रेजी पढ़ने आते हैं। माखर भी एक छोटा मेरठ हो गया है, जहां अब बिजली भी पहुंच गई है। पानी कुएं से नहीं, नल में आता है। रोजमर्रा का सब सामान अब उपलब्ध है।
लंदन में अबीर की शादी की बातें चलने लगीं। इस बार संजय से बात करने के बाद अमिता ने एक दिन बड़े ही प्यार से बेटे से साफ-साफ कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारी उम्र अब शादी की हो गई, कोई लड़की अगर तुम्हें पसंद है तो बताओ। हम तुम्हारी शादी तुम्हारी पसंद से ही करेंगे। हम दोनों की इच्छा है कि तुम शादी के बाद अपनी पत्नी के साथ नाना-नानी से मिलने एवं समस्त परिवार का आशीर्वाद पाने के लिए भारत चलना। हमारा गांव छोटा जरूर है किंतु अब वहां सब कुछ मिलता है। सिया पर मैं बहुत दबाव नहीं डाल पायी थी, लेकिन तुम मुझे निराश न करना।’’
‘‘मां, मैं स्वयं आपसे इस सिलसिले में बात करने वाला था। आप वैलरी से तो एक बार मिल चुकी हैं। वह एक पढ़ी-लिखी फ्रेंच लड़की है। हम दोनों ने विवाह करने का निश्चय कर लिया है। आपकी भावनाओं को ध्यान रखते हुए मैंने वैलरी से भारत चलने की बात कर ली है। इस विचार से वह बहुत खुश और गांव जाने के लिए भी बड़ी उत्सुक है। मां, शादी के बाद हम सब जरूर चलेंगे।’’
मां ने उठ कर बेटे का मस्तक चूमा और मुस्कराते हुए संजय से कहा, ‘‘देखा, अपना बेटा कितना समझदार हो गया है! छोटा बच्चा अब बड़ों जैसी बातें करने लगा है। चलो जल्दी ही इसकी भी शादी कर दें। आप क्या सोचते हैं?’’
संजय का वही छोटा सा जवाब, ‘‘ठीक है।’’
‘मुराद पूरी हुई’ अमिता ने राहत की सांस ली। ‘अबीर की शादी के बाद जब गांव जाऊंगी, बड़े बरगद वाले सैयद की मजार पर दीया बाल कर चादर चढ़ाऊंगी।’
बहुत ही धूमधाम से अबीर और वैलरी की शादी भारतीय रीति-रिवाजों से लंदन में सम्पन्न हुई। भारतीय, फ्रेंच, अंग्रेजी एवं अन्य नागरिकता के लोगों ने वर-वधू को अपनी उपस्थिति से आशीर्वाद दिया। भारतीय लिबास में वैलरी बहुत सुंदर लग रही थी। शीघ्र ही वैलरी ने अपने आप को भारतीय परिवेश में ढाल लिया। शादी के दो माह बाद अमिता का अपने परिवार के साथ अप्रैल के महीने में भारत जाना निश्चित हुआ।
माखर में यह खबर बिजली की तरह फैल गई कि गांव की बेटी पहली बार अपने पूरे परिवार के साथ आ रही है। गांव इनके स्वागत के लिए उसी प्रकार सजाया गया था, जैसा संभवतः श्री राम-सीता और लक्ष्मण जी के लिए त्रोता युग में अयोध्या सजाया गया होगा। महिलाओं ने कई स्वागत गीत और नृत्य तैयार किए। बालक-वृद्ध सभी किसी न किसी काम में व्यस्त थे। जिस पाठशाला में अमिता ने प्रारम्भिक शिक्षा पाई थी, वहां के शिक्षक और विद्यार्थी खासतौर पर उत्साहित थे। कागज की रंग-बिरंगी झंडियों से गलियां झिलमिला रही थीं। नहर की पुलिया से लेकर घर तक सड़क के दोनों किनारों पर लाल और सफेद रंग के चूने की लकीरें खींची गयी थीं। गैंदों के फूलों की महक वातावरण में चारों ओर फैली हुई थी।
एयर इंडिया के जहाज से ‘इन्दिरा गांधी हवाई अड्डे’ पर जैसे ही वे लोग बाहर निकले कि उनके शरीर बाहरी गर्म तापमान से झुलसने लगे। सब ने इंग्लैंड के गर्म कपड़ों को उतारना शुरू कर दिया। दो वातानुकूलित कारों में बैठ कर माखर की ओर चल दिये। थकान एवं जैट लैग की वजह से सबको नींद आ रही थी, किंतु वैलरी तो सब कुछ देखना और समझना चाहती थी। हरे-भरे आम के बाग तथा लहराते गेहूं और गन्ने के खेत देख कर वह बहुत खुश हुई। आश्चर्य से कहा, ‘‘मुझे मालूम नहीं था कि भारत में इतनी हरियाली है।’’ माखर पहुंचने पर बैंड-बाजे के साथ उनका भव्य स्वागत हुआ। सबको दो-दो लड्डुओं की थैली बांटी गयी। अमिता के माता-पिता ने अपने सभी बच्चों को प्रेमाश्रु से भिगो दिया। सब काम समाप्त होते-होते रात का एक बज गया था, तब सब अपने-अपने कमरों में सोने के लिए चले गये।
सुबह चार बजे मस्जिद की अजान सुनकर वह उठ गयी। पड़ोस से आती हुई मुर्गे की आवाज से अमिता को अहसास हुआ कि वह भारत ही में है। खिड़की के बाहर झांक कर देखा, उगते हुए सूरज के बिखरे हुए लाल रंग आसमान में फैले हुए थे। किसान ट्रैक्टर और हैरो लेकर खेतों की तरफ जा रहे थे। यह दृश्य उसको बड़ा अपना सा लगा। सुबह की पहली किरण के साथ लोगों का आना-जाना शुरू हो गया। मंदिर की मधुर घंटियों ने ब्रह्म मुहूर्त को सुहाना बना दिया।
दूर से आती हुई एक जानी-पहचानी आवाज सुनकर वह दौड़ती हुई दरवाजे तक पहुंची। सारंगी की मधुर लय सुन कर वह चैखट पर ठिठक गई। खुशी के मारे जोर से चिल्लाई, ‘‘यही है, यही है जो मैं खोज रही थी।’’
आवाज सुन कर सब लोग बाहर दरवाजे पर आ गये। अबीर और सिया ने पूछा, ‘‘मां, क्या हुआ? क्या है वह? क्या मिल गया?’’
‘‘वही जो मैं वर्षों से खोज रही थी। सुनो, और ध्यान से सुनो। यह वही सारंगी की आवाज है, जो मेरे मस्तिष्क में गूंजती रहती थी। वह सारंगी वाला इधर अवश्य आयेगा। उसके शरीर पर लंबा सफेद अंगरखा होना चाहिए और हाथ में एक सारंगी।’’ संगीत की आवाज धीरे-धीरे नजदीक आती गई। अमिता रोमांचित सी हो गई। बच्चे मां का चेहरा देखते रहे। अब तो आवाज एवं गायक दोनों अमिता के दरवाजे पर थे। अमिता दौड़ कर दरवाजे तक गई और कहा, ‘‘बाबा, आपकी सारंगी का संगीत तो वही है जो वर्षों पहले था, बिलकुल भी नहीं बदला।’’
‘‘मैंने तो यह संगीत अपने अब्बा से सीखा है। उनके इंतकाल को करीबन 15 साल हो गये हैं। मैं कभी-कभी उनके साथ यहां फेरे पर आता था और मैंने आपको पहचान लिया है। आप कैसी हैं?’’
‘‘तो क्या आप बाबा नहीं हैं?’’
‘‘नहीं, मैं तो उनका सबसे बड़ा बेटा मुन्नवर हूं। शायद आप बहुत दिनों बाद गांव में वापस आई हैं?’’
‘‘ओह नो!’’
‘‘बहन, मैं आपको सारंगी पर बाबा का एक राग सुनाता हूं।’’ सारंगी पर उंगुलियां चलने लगीं और गाना गाते हुए वह बाबा की तरह झूमने लगा। सब कुछ वही था, किंतु वह बाबा नहीं था। अमिता खुश एवं निराश दोनों थी।
संजय ने कहा, ‘‘शाबाश, तुम्हारे संगीत में तो वास्तव में जादू है।’’ उसने अपनी जेब से निकाल कर बहुत सारे रुपये मुन्नवर को इनाम में दिये। सारंगी वाले ने अमिता को बाबा के संगीत की बनी एक सी.डी. थैले में से निकाल कर दी जो उनके लिए किसी एक प्रसंशक ने बनवाई थी। अमिता इस उपहार को पाकर फूली नहीं समाई।
अबीर ने सब को बताया कि मां किस प्रकार अनेक वर्षों से इस धुन को ढूंढ रही थीं। वैलरी ने, जो मनोविज्ञान में विशेषज्ञ थी, अमिता से अनुरोध किया, ‘‘मां, मुझे उस सारंगी वाले बाबा के बारे में कुछ बताएं जो आपको अब भी याद है। आई विल बी ग्रेटफुल।’’
अमिता आंखें बंद करके एक सोफे पर बैठ गयी। घर के सब सदस्य उसके आस-पास उत्सुकता से सुनने के लिए इक्कठे हो गये।
‘‘ऐसा मालूम होता है कि कल ही की बात है। सारंगी वाले बाबा हमारे गांव आया करते थे। सांवला रंग, लंबा कद, सफेद खद्दर का अंगरखा और राजस्थानी सफेद पग्गड़, जैसे किसी किताब से बाहर आकर हमारे सामने खड़े हो गये हों। उनके एक कंधे पर सारंगी तथा दूसरे कंधे पर सफेद कपड़े का बना थैला लटका होता था। बाबा का शांत स्वभाव और चेहरे का तेज सबको आकर्षित करता था। सारंगी उनकी अमूल्य निधि थी। समस्त जीवन का अनुभव उनके स्वर एवं तारों की झंकार में सिमट गया था। बच्चे गर्मी की छुट्टियों में अपने खेल-कूद छोड़कर बाबा की मन-मोहक सारंगी और गायन को सुनने तालाब के किनारे इकट्ठे हो जाया करते थे। घर की सब औरतें काम-काज जल्दी खत्म करके बाबा की सारंगी सुनने बैठ जाती थीं।’’
सिया ने पूछा, ‘‘मां, उनके संगीत की क्या विशेषता थी।’’
‘‘भारतीय परंपराओं की प्रचलित रागिनियां, महान राजाओं की कथाएं तथा गोपीचंद और पूरणमल के किस्से बाबा गाकर सुनाते थे। कोई भी अगर अपनी पसंद की रागिनी गाने के लिए कहता, खासतौर से बड़े-बुजर्ग लोग तो बाबा के चेहरे पर एक अनोखी चमक आ जाती। ‘मुकर्रर’ शब्द का इस्तेमाल तो गांव में कोई नहीं करता था, परन्तु खिड़कियों के पीछे चिलमन से झांकती हुई बहू-बेटियां अपने छोटे बच्चों के द्वारा फिर से गाने की फर्माइश भिजवाती थीं।
‘‘नीम के पेड़ के नीचे छाया में बिछी हुई चारपाइयों पर एक-एक करके गांव के लोग धीरे से आकर बैठ जाते। घर और खेतों की व्यस्त दिनचर्या से जिन्हें एक पल की भी फुर्सत नहीं होती, वे सभी उस लम्हे को जी लेना चाहते थे। ज्ञान, भक्ति, आध्यात्म तथा बहुधा वीर गाथाओं को बाबा लयबद्ध करके सुनाते थे। ऐसा प्रतीत होता था कि सरस्वती, ईश्वर तथा परमात्मा यहीं विराजमान हैं। सुनने वाले मौन होकर स्वर-सागर की गहराई में डूब जाते। दोपहरी का शांत वातावरण संगीत की झंकार से गुंजित हो उठता था। उनके गानों में भारतीय दर्शन तथा इतिहास की कहानियां विद्यमान होती थीं। श्रोताओं की एकाग्रता अपनी चरम सीमा पर होती और तन्मय होकर झूम उठते थे। पशु-पक्षी, खग और मृग अपनी चिहुंक तथा छलांगों को भूल जाते थे। बाबा की तारों पर कांपती उंगुलियां मायावी पुलकन उत्पन्न करती थीं। संगीत के वे फरिश्ते थे। उनके साथ न कोई तबला या दूसरा साज होता था। अकेले ही वे अपनी जादू की सारंगी के खिंचे तारों को छूते और सब का मन मोह लेते थे। गांव के किसी परिवार से अगर कोई एक वहां उपस्थित न होता, तो उसके बारे में पूछते ‘वह कहां है?’
‘‘बाबा को सब घरों से गेहूं के आटे का भरा एक-एक कटोरा मिलता था। आस-पास के तीन-चार गांवों में सारंगी का फेरा लगाते हुए वह हमारे गांव आया करते थे।’’
यह बताकर अमिता खामोश हो गयी।
बाबा की सारंगी की आवाज अब सभी को वातावरण में गूंजती हुई महसूस हो रही थी।

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