एक फिल्म की शूटिंग हो रही थी। स्टूडियो में पूर्ववत् हंगामा था।
हीरो के सिर पर नकली बालों की विग बिठाई जा रही थी। हीरोइन बार-बार आईने में अपनी लिपिस्टिक का मुआयना कर रही थी। डायरेक्टर कभी डायलाग राइटर से उलझ रहा था, कभी कैमरामैन से। प्रोडक्शन मैनेजर एक्स्ट्रा सप्लायर से एक कोने में अपना कमीशन तय कर रहा था॥
कैमरामैन के असिस्टेंट ने रोशनियों को काले शीशे से देखकर कैमरामैन से कहा, ”शाट रेडी।”
डायरेक्टर ने हीरो से कुर्सी के पास जाकर धीरे-से कहा, ”शाट रेडी।”
हीरो ने इत्मीनान से सिगरेट का कश लिया। फिर दो आईनों में अपने सिर को आगे-पीछे से देखा। फिर विग को दो-तीन बार थपथपाया। नकली बालों की लट को माथे पर गिराया और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
असिस्टेंट डायरेक्टर की तरफ देखकर (जो डायलाग की फाइल लिये खड़ा था) हीरो ने पूछा, ”पिक्चर कौन-सी है?”
”मां का दिल।”
”सीन कौन-सा है?”
”जी, यह वह बच्चे वाला सीन है।”
”बच्चे वाला सीन! मगर इस फिल्म में तो मेरी शादी ही नहीं हुई। बच्चा कैसे हो गया?”
”जी नहीं। यह आपका बच्चा नहीं है। रास्ता चलते आपको एक लावारिस बच्चा मिल जाता है। बच्चे को देखकर आपको अपना बचपन याद आ जाता है। अपनी मां याद आ जाती है। आप बच्चे को गोद में उठा लेते हैं। आपकी आंखों से आंसू आ जाते हैं और आप बोलते हैं…।”
”हां, तो डायलाग सुनाओ।”
डायलाग डायरेक्टर ने फौरन फाइल खोलकर पढ़ना शुरू किया, ”यह बच्चा भी किसी की आंखों का नूर है।”
हीरो ने पूछा, ”नूर! नूर क्या होता है?”
डायलाग डायरेक्टर ने पेंसिल से अपना गंजा सिर खुजाते हुए जवाब दिया, ”ज… नूर… नूर तो बस नूर होता है। जैसे नूर मोहम्मद, नूरूलहसन… दरअसल राइटर ने तो नूर का काफिया सरूर से मिलाया है।”
”पूरा डायलाग पढ़ो।”
”यह बच्चा भी किसी की आंखों का नूर है, किसी के दिल का सरूर है। अगर आज यह भूखा है, तो यह समाज का कसूर है। कल यही बच्चा बड़ा होकर डाक्टर, वकील या लीडर बन सकता है, मुल्क और कौम का लीडर बन सकता है।”
”यह सब क्या बकवास है?” हीरो ने कहा और फिर डायरेक्टर की तरफ मुखातिब होकर कहा, ”इतना बड़ा डायलाग मुझे याद भी नहीं होगा।”
डायलाग डायरेक्टर ने डायलाग के पूरे सफे पर नीली पेंसिल का निशान बनाते हुए कहा, ”कुमार साहब, आप ही बताइए न?”
हीरो ने सोचकर कहा, ”तो लिखो, यह बच्चा भी किसी मां का दिल है…।”
”जी… आगे…।”
”बस और कुछ नहीं। इतना ही काफी है। यह बच्चा भी किसी मां का दिल है।”
डायलाग डायरेक्टर ने एक बार फिर वही शब्द दोहराए, ”यह बच्चा भी किसी मां का दिल है। वाह! वाह! क्या बात कही है, कुमार साहब…। आपको तो राइटर होना चाहिए था।”
और फिर वह डायरेक्टर से मुखातिब होकर, ”सर, यह तो पिक्चर का थीम डायलाग हो गया।”
”तो फिर चलिए, शाट तैयार है।” डायरेक्टर ने हीरो को इशारा किया। जैसे ही हीरो अपनी कुर्सी से उठा, बाकी लोग भी खड़े हो गए।
”बच्चा लाओ।” पहले असिस्टेंट डायरेक्टर की आवाज गूंजी।
”बच्चा लाओ।” दूसरा असिस्टेंट डायरेक्टर चिल्लाया।
”बच्चा लाओ।” तीसरे असिस्टेंट डायरेक्टर ने आवाज दी।
”सप्लायर।” प्रोडक्शन मैनेजर ने नारा लगाया, ”बच्चा कहां है?”
”मिसेज जानसन।” एक्स्ट्रा सप्लायर चिल्लाया।
एक मोटी-ताजी एंग्लो-इण्डियन औरत, जो न जवान थी, न बूढ़ी आगे बढ़ी। उसकी गोद में एक भूरे बालों वाला गोल-गोल चेहरे, गोल-गोल आंखों वाला बच्चा था, जो नायलोन का बाबा सूट पहने हुए था।
”इसकी ड्रेस तो बहुत बढ़िया लगती है। गरीब के बच्चे की ड्रेस ऐसी कैसे हो सकती हैं?” तीसरे असिस्टेंट डायरेक्टर ने एतराज किया।
”सत्यजित राय की फिल्मों में देखिए… कितना रियलिज्म होता है।”
”ड्रेसमैन।” दूसरा असिस्टेंट डायरेक्टर चिल्लाया।
”जी साहब।” ड्रेसमैन ने जवाब दिया।
”बच्चे की ड्रेस बदली करो। कोई मैला, फटा हुआ कपड़ा पहनाओ।” पहले असिस्टेंट डायरेक्टर ने हुक्म दिया।
ड्रेसमैन ने एक बक्से में हाथ डाला और कुछ गन्दे चिथड़े लिये हुए बच्चे की तरफ बढ़ा।
बच्चे की मां ने जैसे ही उन गन्दे चिथड़ों की तरफ देखा, तो उसने जल्दी-से बच्चे को अपनी छाती से लगा दिया… ”नो.. नो… हमारा बाबा ऐसे डर्टी कपड़े नहीं पहनेगा… कोई बीमारी लग गई तो?”
डायरेक्टर ने अपने असिस्टेंट को इशारा किया, ”रहने दो, आजकल गरीबों के बच्चे भी नायलोन के कपड़े पहनते हैं।”
कैमरे के सामने खड़े हुए हीरो ने मेम साहिबा की गोद की तरफ हाथ फैलाए, ”कम आन, बाबा।”
बच्चा हुमक कर हीरो की गोद में चला गया। सबने इत्मीनान से सांस ली, क्योंकि फिल्मी दुनिया का मुहावरा है कि शूटिंग करते वक्त तीन मुसीबतें आ सकती हैं- घोड़ा, कुत्ता और बच्चा।
मेम साहिबा ने अपने रंगे हुए घने बालों को थपकी देते हुए हीरो की आंखों में आंखें डालकर कहा, ”हमारा बाबा स्वीट है न! बड़ा होकर यह भी फिल्म का हीरो बनेगा।”
कैमरामैन ने एक लाइट को बाएं से जरा दाएं सरकाया। फिर वापस बाईं ओर को सरकाकर उसी जगह रख दिया। फिर कैमरे की आंख की तरफ झुककर देखा, ”कुमार साहब, जरा आगे… बस… बस… बस-बस बिल्कुल ठीक है।”
आगे फिर चिल्लाकर, ”रेडी फार साऊंड टेस्ट।”
साऊंड असिस्टेंट ने माइक्रोफोन आगे बढ़ाया, ”कुमार साहब, डायलाग बोलिए एक बार।”
हीरो ने माइक्रोफोन की तरफ प्यार-भरी नजर से देखा और कहा, ”यह बच्चा भी किसी मां का दिल है।”
”हाऊ इज दैट?” तीनों असिस्टेंट एक साथ चिल्लाए, जैसे क्रिकेट के मैदान में किसी खिलाड़ी को एल.बी.डब्ल्यू. करने के लिए सब फील्डर चिल्लाकर अम्पायर से पूछते हैं, ”हाऊ इज दैट?”
साऊंड रूम में लाऊस्पीकर के जरिए जवाब आया, ”ओ. के. रेडी फार टेक।”
पहला असिस्टेंट डायरेक्टर चिल्लाया, ”खामोश।”
डायरेक्टर ने कहा, ”साऊंड स्टार्ट।”
साऊंड रूम से जवाब आया, ”रनिंग।”
हीरो ने बच्चे को गोद में उठाया। फिर कैमरे की तरफ हसरत-भरी नजर से देखकर बोला, ”यह बच्चा भी किसी…।”
अभी वह इतना ही कह पाया था कि बच्चे ने हीरो के माथे पर गिरी बालों की लट पर एक झपट्टा मारा और विग उसके हाथ में आ गई। हीरो की गंजी चांद स्टूडियो लाइट्स की रोशनी में चमक उठी।
डायरेक्टर घबराकर चिल्लाया, ”कट, कट।”
कालेज की तीन नौजवान लड़कियां, जो कुमार की ‘फैन’ थीं और खासतौर पर उसकी शूटिंग देखने आई थीं, यह देखकर भौंचक्की रह गईं कि उनके महबूब एक्टर की चांद बिल्कुल साफ थी और अण्डे की तरह सफेद।
कुमार गुस्से से सीधा स्टूडियो के बाहर जा चुका था और अब उसके प्राइवेट मेकअप रूप में हेयर-ड्रेसर दोबारा उसकी विग को फिट कर रही थी।
”इस बार मैं चार हेयर क्लिप लगा देती हूं, ताकि खींचने पर भी विग अपनी जगह से न हिले।”
जब दोबारा विग लगाकर हीरो वापस स्टूडियो पहुंचा, तो डायरेक्टर बच्चे की मम्मी से कह रहा था, ”सारी, मेम साहिबा। आपके बच्चे की अब छुट्टी। आगे किसी सीन में हम जरूर उसके लिए कोई काम निकालेंगे।”
प्रोडक्शन मैनेजर ने एक्स्ट्रा सप्लायर को दो सौ रुपए देकर तीन सौ की रसीद ले ली। सप्लायर ने मेम साहिबा को डेढ़ सौ देकर उससे सौ की रसीद ली।
मेम साहिबा बच्चे को लेकर टैक्सी में बैठ ही रही थी कि बच्चे ने एक और झपट्टा मारा और अपनी मां के सिर से उसकी विग खींच ली। मेम साहिबा ने जल्दी-से अपने बालों को दोबारा सिर पर रखते हुए इधर-उधर देखा कि किसी ने देख तो नहीं लिया।
स्टूडियो में फिर हंगामा था।
डायरेक्टर पहले असिस्टेंट से कह रहा था, ”दूसरा बच्चा लाओ।”
पहला असिस्टेंट प्रोडक्शन मैनेजर से कह रहा था, ”दूसरा बच्चा लाओ।”
प्रोडक्शन मैनेजर ने एक्सट्रा सप्लायर को कोने में ले जाकर कहा, ”आज तो तेरी चांदी हो रही है। एक बच्चा और ले आ। जितना शरारती हो, अच्छा है। एक-दो और बच्चों का भी इन्तजाम करके रखना।”
एक्स्ट्रा सप्लायर प्रोडयूसर की कार लेकर गया और थोड़ी ही देर बाद एक तीन-चार साल का मोटा-ताजा बच्चा लेकर आ गया, साथ में था एक काला-सा, लम्बे-लम्बे बालों वाला पहलवाननुमा आदमी।
”हम हाजिर हैं, जी।” पहलवाननुमा आदमी ने डायरेक्टर को एक फौजी सलाम मारते हुए कहा।
”तुम कौन हो?”
”आपने पहचाना नहीं? मैं मास्टर गट्ठन हूं, इंडस्ट्री का पुराना आदमी हूं। ‘शहजादा गुलफाम’ में विलेन का रोल किया था। ‘बागी शहजादी’ में साइड हीरो था। ‘लाल घोड़ा’ में साइड विलेन, अब भी करेक्टर रोल कर लेता हूं। बोलिए, क्या हुक्म है? हम हाजिर हैं।”
डायरेक्टर ने चिढ़कर कहा, ”भई, हमें इस वक्त सिर्फ एक बच्चे की जरूरत है।”
”बच्चा भी हाजिर है, सरकार।” यह कहकर पहलवाननुमा आदमी ने बच्चे को आगे कर दिया, ”डायरेक्टर साहब को सलाम करो।”
बच्चा हरे रंग की मखमल की निक्कर और बुशर्ट पहने था। हाथ में एक झुनझुना लिये हुए था, मगर उसका चेहरा बच्चों जैसा न था। ऐसा लगा था, जैसे किसी जादूगर ने एक अधेड़ उम्र के आदमी को छोटे कद का बना दिया हो। बाप का हुक्म सुनते ही उसने भी एक फौजी सलाम किया और माथे से अपना हाथ नहीं हटाया, जब तक बाप ने अगला हुक्म न सुनाया।
”अभी साहब को टि्वस्ट करके बताओ, बेटा।”
और वह बच्चा जिसका चेहरा बच्चों जैसा नहीं था, अचानक टि्वस्ट करने लगा, जैसे वह चाबी वाला गुड्डा हो।
”शाबाश, बेटा शाबाश।” बाप टि्वस्ट की लय पर तालियां लगाता हुआ बोला। बच्चा थिरक रहा था। अपने कूल्हे मटका रहा था। कभी आगे बढ़ता था, कभी पीछे हटता था। कभी दाएं, कभी बाएं।
आहिस्ता-आहिस्ता सैट पर जितने लोग जमा थे, वह बच्चे का डांस देखने लगे।
तब प्रोडयूसर ने डायरेक्टर के कान में कहा, ”यह सब बन्द करो। कुमार जी को दिनभर की शूटिंग का पचास हजार देना है और शाट अब तक नहीं हुआ।”
डायरेक्टर ने चिल्लाकर कहा, ”कट, कट।”
डांस करते-करते बच्चा एकदम रुक गया, जैसे उसकी चाबी खत्म हो गई हो।
डायरेक्टर ने पहले असिस्टेंट को हुक्म दिया, ”कुमार जी को कहो, बच्चा आ गया। शाट तैयार है।”
तीसरा असिस्टेंट मेकअप रूम की तरफ भागा।
हीरो ने स्टूडियो में दाखिल होते ही पूछा, ”बच्चा कहां है?”
हरे रंग की नेकर वाले बच्चे ने हीरो को फौजी सलाम करते हुए कहा, ”गुड मार्निंग, हाऊ डू यू डू?” और यह कहकर हीरो की तरफ देखकर इतने जोर से आंख मारी कि हीरो घबराकर पीछे हट गया। सब लोग कहकहा लगाकर हंस पड़े।
हीरो ने बच्चे से हाथ मिलाते हुए पूछा, ”क्यों पहलवान, काम करोगे? घबराओगे तो नहीं?”
बच्चे ने तुतलाते हुए जवाब दिया, ”घबलाएंगे तो आप!” इस पर एक और फरमाइशी कहकहा पड़ा और हीरो ने खिसियाने-से होकर पूछा, ”क्या इस आफत के परकाले को मुझे गोद में उठाना होगा?”
कैमरामैन चिल्लाया, ”रेडी फार टेक।”
”साउंड स्टार्ट।” डायरेक्टर ने आवाज दी।
”कैमरा।” साऊंड रिकार्डिस्ट की आवाज आई, ”रनिंग।”
हीरो ने बच्चे की तरफ प्यार-भरी आंखों से देखा। बच्चे ने आंख मारी।
हीरो की जुबान से निकला, ”यह बच्चा भी… यह बच्चा भी…” और फिर उसकी बजाय बच्चा बोला, ”क्यों बेटा, डायलाग भूल गए न?”
हीरो को ऐसा लगा, जैसे उसकी गोद में आदमी का बच्चा न हो, किसी राक्षस का बच्चा हो और उसने ‘कट इट’ कहकर बच्चे को उसके बाप की तरफ फेंका। और इस तरह पहलवान साहब भी सौ-सौ के दो नोट जेब में डालकर बच्चे का हाथ पकड़कर विदा हो गए।
तीसरा बच्चा लाया गया। उसने शाट शुरू होने से पहले ही हीरो के सूट पर पेशाब कर दिया। हीरो ने कहा, ”मैं इसके साथ काम नहीं करूंगा।”
चौथा बच्चा आया। यह देखने में बड़ा भोला-भाला था और मासूम भी। सबको यकीन था कि अब शाट कुशलतापूर्वक हो जाएगा, लेकिन जैसे ही हीरो ने उसे गोद में लिया, बच्चा पछाड़ें खाने लगा। रो-रोकर उसने आसमान सिर पर उठा लिया। बच्चे को मां की गोद में वापस दिया गया, तो फौरन चुप हो गया। दोबारा हीरो की गोद में दिया तो चुपके-से चला गया, लेकिन जैसे ही कैमरा चालू हुआ और हीरो ने डायलाग बोला, ”यह बच्चा भी…” कि उसने न सिर्फ रोना शुरू कर दिया, बल्कि अपने नन्हे-से पांव से इतनी जोर से लात मारी कि हीरो की आंख फूटते-फूटते बची।
हीरो ने फैसला सुना दिया, ”मैं इस बच्चे के साथ भी काम नहीं करूंगा। या तो कोई सीधा-सादा खामोश बच्चा लाओ, नहीं तो सीन केंसिल करो।”
सप्लायर ने कहा, ”अब मैं कब तक बच्चे लाता रहूंगा, इस तरह तो सारी मुम्बई के बच्चे खत्म हो जाएंगे।”
प्रोडक्शन मैनेजर ने कहा, ”तुझे क्या हुआ? तेरी तो चांदी हो रही है?”
”और तुम्हारी नहीं?” सप्लायर ने चिढ़कर कहा।
”अच्छा भई, हम दोनों की। अब एक खामोश-सा बच्चा ले आ कहीं से।”
”मैं तो जितने फिल्मी बच्चों को जानता हूं, सबको ले आया। हर मां अपने बच्चे को फिल्म में काम करने नहीं भेजती। दो-चार लोग हैं, जो अपने बच्चों का धन्धा करते हैं।”
”अरे भाई, पैसे की खातिर कोई भी अपने बच्चे का धन्धा कर सकता है।”
यह बात करते-करते वे दोनों स्टूडियो से बाहर निकल आए थे, जहां एक जमादारनी सड़क पर झाडू दे रही थी।
”अरी, जरा ठहर।” प्रोडक्शन मैनेजर चिल्लाया, ”सारे में मिट्टी उड़ा रही है। यह वक्त है झाडू देने का। सवेरे क्यों नहीं आई?”
”बाबू जी, आज मुझे देर हो गई थी।”
”देर हो गई थी, तो पगार कटेगी। कोई मुफ्त काम करती है क्या?”
”बाबू जी,” जमादारनी काम बन्द करके गिड़गिड़ाती हुई बोली, ”मेरा बच्चा बीमार है।”
”बीमार है। क्या बीमारी है?”
”बाबू जी, पता नहीं, क्या बीमारी है। दस दिन से बुखार नहीं उतरा।”
”तो फिर डाक्टर को क्यों नहीं दिखाया?”
”मुहल्ले के डाक्टर को दिखाया। बाबू जी, दस रुपए फीस भी दी थी। वह बोला, इसे बच्चों वाले बड़े डाक्टर को दिखाओ। उसकी फीस पचास रुपए है। फिर दो इंजेक्शन के लिए भी पैसे चाहिए। अगले महीने की पगार अभी मिल जाती, तो बच्चे का इलाज हो जाता।”
”जा, बच्चे को ले आ। उसके इलाज के लिए रुपए मिल जाएंगे, पूरे सौ रुपए।” एक्स्ट्रा सप्लायर ने प्रोडक्शन मैनेजर को आंख मारते हुए कहा।
प्रोडक्शन मैनेजर बोला, ”अरी, तेरे बच्चे का फिल्म में फोटो आ जाएगा। पैसे भी मिलेंगे। जल्दी-से ले आ।”
”अभी लाती हूं, बाबू जी।”
”मगर सुन, बच्चा रोएगा तो पैसे नहीं मिलेंगे। खामोश रहना चाहिए।”
जमादारनी एक बार तो ठिठककर ठहर गई, फिर सोचकर बोली, ”नहीं बाबू जी, रोएगा, चिल्लाएगा नहीं।”
जमादारनी स्टूडियो के पीछे ही झुग्गी-झोपड़ियों की बस्ती में रहती थी। अपनी झोपड़ी में जाने से पहले उसने पड़ोसिन का दरवाजा खटखटाया।
”क्या है कमला बाई?”
”बच्चा बहुत रोता है, बहन। मुझे काम पर जाना है। वह दवा दे दो, जो तुम काम पर जाते हुए अपने बच्चे को देती हो।”
पड़ोसिन ने पुड़िया पकड़ा दी, ”बस थोड़े-से पानी में घोलकर दीजियो।”
कमला अपनी झोपड़ी में गई। बच्चा अपनी बड़ी बहन की गोद में लेटा रो रहा था। कमला ने बेटे को गोद में लिया। उसका बदन जल रहा था। रोये ही जा रहा था। कमला ने बच्चे को प्यार किया, ”न रो मेरे लाल। चल, मैं तुझे फिल्म कम्पनी में ले चलती हूं। मेरा बेटा फिल्म का हीरो बनेगा। फिर तुझे बड़े डाक्टर के पास ले जाऊंगी। न रो मेरे लाल… न रो।” यह कहकर उसने पानी में घुली हुई काली-काली दवा बच्चे को चटा दी। बच्चा रोते-रोते हलकान होकर अब हिचकियां लेते-लेते निढाल होकर सो गया। कमला ने बच्चे को कुछ चिथड़ों में लपेटा और स्टूडियो की तरफ चल दी। एक्स्ट्रा सप्लायर ने कहा, ”रोएगा तो नहीं?”
कमला ने कहा, ”नहीं, बाबू जी। सुबह से रो रहा है।”
डायरेक्टर ने पूछा, ”यह रोएगा तो नहीं?”
प्रोडक्शन मैनेजर ने कहा, ”नहीं साहब, बड़ा शरीफ बच्चा है। मां का दूध पीकर मजे से सो रहा है।”
हीरो ने बच्चे को गोद में लेने से पहले पूछा, ”रोएगा तो नहीं?”
”नहीं, कुमार साहब।” डायरेक्टर ने उसे यकीन दिलाया, ”बड़ा खामोश बच्चा तलाश करके मंगवाया है।”
हीरो ने बच्चे को गोद में ले लिया और सोचा, शुक्र है, इसका वजन ज्यादा नहीं है। वह बोला, ”जल्दी शाट ले लो। अभी तो सो रहा है। उठ गया तो यह भी नाक में दम करेगा।”
हीरो ने बच्चे को गोद में उठाया। उसके चेहरे को देखा। बच्चा इत्मीनान से आंखें बन्द किए सो रहा था। उसके मासूम चेहरे पर एक अजीब-सी मुस्कराहट थी। हीरो ने कैमरे की तरफ देखकर दिल की गहराई से आवाज निकाली, ”यह बच्चा भी किसी मां का दिल है।”
उस वक्त एक हवाई जहाज स्टूडियो के ऊपर गूंजता हुआ गुजर गया। लाऊडस्पीकर में से साऊंड रिकार्डिस्ट की आवाज आई, ”कट, कट।”
किसी-न-किसी वजह से तीन बार और शाट दोहराया गया। तब आखिरी शाट ओ. के. किया गया।
हीरो ने बच्चा प्रोडक्शन मैनेजर के हवाले किया। बच्चा अब तक सो रहा था। प्रोडक्शन मैनेजर ने बच्चा एक्स्ट्रा सप्लायर की गोद में दिया।
एक्सट्रा सप्लायर ने कमला की गोद में बच्चा दिया और साथ ही सौ रुपए देकर डेढ़ सौ की रसीद पर अंगूठा लगवा लिया।
”जा, अब इसे डाक्टर के पास ले जा और अच्छी तरह इलाज करवा।”
”बाबू जी! सीधी वहीं जाती हूं टैक्सी करके। आपकी कृपा से इसका इलाज हो जाएगा।”
बच्चे के स्पेशलिस्ट डाक्टर ने पहले फीस ले ली, फिर बच्चे का मुआयना किया।
”मगर यह तो मर चुका है।” डाक्टर ने हाथ लगाते ही कहा।
कमला को ऐसा लगा, जैसे उसकी आंखों के सामने एकदम अंधेरा छा गया हो। फिर भी वह कांपती हुई आवाज में बोली, ”डाक्टर साहब, क्या हुआ मेरे लाल को? इसे तो सिर्फ बुखार आ रहा था।”
”बुखार से नहीं, लगता है तुम्हारा बच्चा जहर से मरा है। क्या दिया था, इसे खाने को?”
”कुछ नहीं, डाक्टर साहब। जरा-सी अफीम दी थी, चुप कराने को।”
साल-भर बाद ‘मां का दिल’ फिल्म की सिल्वर जुबली के मौके पर एक बड़े नेता ने तकरीर करते हुए कहा, ”मैं इस फिल्म के प्रोडयूसर, डायरेक्टर, हीरो और हीरोइन को मुबारकबाद देता हूं कि उनकी फिल्म में सचमुच एक हिन्दुस्तानी मां के दिल की धड़कन सुनाई देती है।”
(अनुवादक : सुरजीत)
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