21 January, 2014

एक खेल- डा. रामदरश मिश्र

चुनाव का शोर उमड़ा हुआ था। कारें, जीपें, टैंपो, तांगे – सभी तमाम पार्टियों के पोस्टर पहने हुए, अनेक झंडे लहराते हुए दौड़ रहे थे और सभी के ऊपर से माइक गरज रहे थे, ‘अमुक पार्टी को वोट दो, अमुक पार्टी को वोट दो।’। सारे दल एक-दूसरे की बखिया उधेड़ते हुए देश और समाज के प्रति अपने वायदे छींट रहे थे। एक पोस्टर दूसरे पोस्टर को मुंह चिढ़ाता हुआ उसके पास ही अपनी विगत उपलब्धियों और भावी क्रिया-कलापों का डंका बजा रहा था।
लोग आपस में बहस कर रहे थे और भिन्न-भिन्न दलों के बारे में भिन्न-भिन्न राय उछाल रहे थे। भिन्न-भिन्न उम्मीदवारों के चरित्रों की फेहरिस्त खोले हुए थे। अरे, यह तो डाकू था; अरे, इसने तो कई खून किए हैं; अरे, यह तो चोर-बजारिया है; अरे, यह तो तमाम गुंडे पाले हुए है।
‘‘हां, लेकिन यह भी तो देखो कि इतने पर भी वह लोगों का कितना काम करता है। भले लोग लेकर क्या करोगे, जो काम ही न करते हों?’’
‘‘क्यों, भले लोग काम नहीं करते? क्या पहले के वे नेता भले नहीं थे, जिन्होंने देश के लिए कुरबानियां दीं और जिन्होंने देश के निर्माण में अहम भूमिका निभाई है… अरे भाई, इतनी पार्टियों को तो देख लिया गया, अब अगर यह पार्टी आती है तो निश्चय ही अच्छा होगा।…’’
‘‘क्या खाक अच्छा होगा, सबको देख लिया है!’’
यह सब सुनता-सुनता मैं कचहरी में पहुंच गया। देखा, एक जगह मजमा लगा हुआ है। मैं भी उधर सरक गया।
देखा, एक मदारीनुमा आदमी अपना ताम-झाम फैलाए वहां बैठा था, ‘‘हां तो मेहरबान, कदरदान! आइए, एक राष्ट्रीय खेल देखिए। मेरे पास तीन पंछी हैं। आइए, इनका कमाल देखिए!’’ अब मेरा ध्यान उन पंछियों की ओर गया। देखा, तीन पिंजड़ों में तीन तोते थे। तीनों अलग-अलग जाति के लग रहे थे।
‘‘हां तो प्यारे पेटू राम! मेहरबानों, कदरदानों से तुम क्या कहना चाहते हो?’’
लोग उत्सुक हो उठे।
‘‘एक पैसा कोई मुझे दे देता।’’ पेटू राम बोले।
लोग हंसने लगे, ‘‘अरे वाह रे पेटू राम!’’
‘‘देद हो, देखीं का करे लें!’’ (दे दो न, देखो ये क्या करते हैं!)
बेटू राम की बोली सुनकर लोग खुशी से तालियां बजाने लगे। ‘‘अरे वाह रे बेटू राम!’’
बेटू राम की आवाज फिर आई, ‘‘देद हो, देखीं का करे लें! देद हो, देखीं का करे लें!’’
लोग खुशी से तालियां बजा रहे थे। मदारी ने कहा, ‘‘मेहरबानो, कदरदानो, बेटू राम की बात पर आप खुश तो हो रहे हैं, लेकिन वह जो कह रहे हैं, वह कर नहीं रहे हैं।’’
तब लोगों को ध्यान आया, ‘अरे हां, यह तो पैसा देने को कह रहा है।’ फिर क्या था, पैसे गिरने लगे। जब पैसे गिर चुके तो लोग उत्सुकता से देखने लगे कि देखें तो अब पेटू राम इन पैसों का क्या करता है। और यह तीसरा पंछी क्या करता है!
‘‘धर गोलक्क में, धर गोलक्क में, धर गोलक्क में।’’ (यानी सारे पैसे बटोरकर गोलक में रख ले) समेटू राम बके जा रहा था।
फिर जोर की ताली बजी और मदारी ने सारे पैसे बटोरकर अपने झोले में डाल लिये।
लोग सोच रहे थे कि देखें, अब इसके बाद क्या होता है कि सारे पंछी एक स्वर में बोले, ‘‘अलविदा, अलविदा, हमारे मेहरबानो, कदरदानो!’’
मदारी वहां से सरक गया और भीड़ शायद सोचती खड़ी रही, ‘यह कौन-सा खेल है भैया कि बिना कुछ किए-दिए मदारी पंछियों से खाली कुछ शब्द सुनवाकर हमारे पैसे बटोरकर चला गया। यह तो अद्भुत धोखा है।’
मैं वहां से आगे बढ़ा तो देखा, फिर वही बड़े-बड़े वायदों वाले चुनावी पोस्टर और नेताओं के चित्र यहां-वहां रंग-बिरंगी अदा में चमक रहे थे और एक-दूसरे के विरुद्ध होने के बावजूद पास-पास सटे थे।


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