23 January, 2014

धागे-निर्मल वर्मा

उस रात खाने के बाद कॉफी पीते हुए हम केशी के नये रिकॉर्डों की चर्चा करने लगे
'' मुझे तो रात को नींद नहीं आतीमैं ने ग्रामोफोन लायब्रेरी में रखवा दिया है
'' मीनू ने कहा
'' क्या वह अब भी पीते हैं?'' मैं ने धीरे से पूछा
'' केशी दूसरे कमरे में है''
'' 
हाँ लेकिन मेरे कमरे में नहीं'' मीनू ने दरवाजा खोलकर परदा उठा दिया। बरामदे के परे लॉन अंधेरे में डूबा था। एक अपरिचित सी घनी सी शान्ति सारे अहाते में फैली थी। हम कॉफी पी चुके थे और अपने अपने खाली प्यालों के आगे बैठे थे। मीनू कुर्सी खिसका कर मेरे पास सरक आयी

'' तुम्हारे हाथ बहुत ठण्डे हैं
'' उसने मेरे दोनों हाथ अपनी मुट्ठियों में भर लिये, '' तुम्हें इतनी देर कैसे हो गयीशैल तुम्हारी राह देखते देखते अभी सोई है''
'' मैं फाटक से तुम्हारे कमरे तक भागती आई थी
'' मैं ने कहा। मैं ने झूठ कहा था। मैं मीनू से यह नहीं कहूंगी कि मैं पिछले आधे घण्टे से लॉन में अकेली बैठी रही थी कहूंगीतो वह विश्वास नहीं करेगी
'' क्यों तुम्हें अब भी अंधेरे से डर लगता है?'' मीनू हंस रही थी
उसका एक हाथ अब भी मेरी गोद में पडा था। बिजली की रोशनी में उसकी सफेद पतली बांहें बहुत सफेद थींबहुत पतली थीं। मुझे अजीब सा लगता। केशी इन हाथों को कैसे चूमता होगाकैसे इन बांहों के महीन भूरे रोयों को सहलाता होगा?
'' सुनो परसों रात तुम क्या कर रही थीं?
'' 
क्यों अपने कमरे में थी।'' मैं ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।
'' 
कनॉट प्लेस से घर लौटते हुए हम तुम्हारे हॉस्टल आये थे।''
'' 
बहका रही हो?'' मैं ने कहा।
'' 
सच आये थेकेशी से पूछ लेना। लेकिन इतनी रात भीतर कैसे आते तुम्हारी मिसेज हैरी देखतीं तो हमें कच्चा चबा जातीं।'' वह हंस रही थी।
'' 
क्या तुम लोग रुके थे?''
'' 
हम हॉस्टल के बाहर खडे रहे थे तुम्हारे कमरे की बत्ती जली थी। केशी ने कई बार हॉर्न बजाया था। हमने सोचा था तुम हमारी कार का हॉर्न पहचान जाओगी लेकिन तुमने सुना नहीं।''
'' 
मैं शायद सो गई थी मुझे कुछ पता भी नहीं चला।''
'' 
तुम अब भी लाइट जला कर सोती हो?'' मीनू ने पूछामिसेज हैरी कुछ नहीं कहतीं?''
''
यह वर्किंग वीमेन्स हॉस्टल हैऔर मिसेज हैरी कोई कॉन्वेन्ट स्कूल की मेट्रन थोडे ही हैं।'' मैं ने कहामीनू समझ गई।हम दोनों को एक बहुत पुरानी घटना याद आ गई थी और हम दोनों हंसने लगे थे।
उन दिनों मैं और मीनू स्कूल के हॉस्टल में रहा करते थे। कमरे में बत्ती जला कर सोने की सख्त मनाही थी। अंधेरे में डर के मारे मेरी देह के पोर पोर से पसीना छूटने लगता था और मैं सबकी आंख बचाकर चोरी - चुपके बत्ती जला लेती थी। डिनर के दो घण्टे बाद जब कभी मैट्रन कमरों का राउण्ड लगाने आतीतो मेरा दिल रह रह कर दहल जाता। मैं आंखें मूंद कर प्रार्थना करती रहती। किन्तु मैट्रन की आंखें चील की तरह तेज थीं। उन्हें धोखा देना आसान नहीं था। वह बडबडाते हुए मेरे कमरे में आतीं और बत्ती बुझा जातीं। किन्तु जब वह मेरे कमरे से जाने लगतीं तो मैं कांपते हाथों से उनकी स्कर्ट पकड लेती, '' प्लीज मैट्रन! '' वह हत्बुध्दि सी मेरी ओर देखने लगतीं और झिडक़ने लगतीं, '' क्या बात हैयह क्या बचपना है?'' वह कहतीं,किन्तु मैं उनकी स्कर्ट पकडे रहती और सिसकते हुए बार बार कहती, '' प्लीज मैट्रन,प्लीज - प्लीज ''
सारे हॉस्टल में यही बात फैल गयी थी। ऊंची क्लास की लडक़ियां या मीनू की सहेलियां जब भी मुझे देखतींहंसते हुए बार - बार कहतीं,''प्लीज मैट्रन,प्लीज - प्लीज ,प्लीज ''
'' मीनू  शिमला याद आता है न जाने कितने बरस बीत गये?'' मैं ने कहा।
'' 
हमने सोचा है अगली गर्मियों में वहां जायेंगे केशी ने अभी तक शिमला नहीं देखा  तुम्हें उन दिनों छुट्टी मिल जायेगी? ''
मैं मीनू को देखती हूंमुझे कुछ समझ नहीं आता

'' तुम्हें नहीं मालूम तुम कैसी हो गयी हो कभी शीशे में अपना चेहरा देखा है? ''
'' 
हाँदेखा है बडा प्यारा सा लगता है'' मैं ने कहा
'' नहीं रूनी मजाक की बात अलग है
। तुम्हें हमारे संग चलना होगाजब से तुम जबलपुर से आई हो''
लेकिन मीनू आगे कुछ नहीं बोलती
। शायद आगे मौन का एक दायरा है जिसे हम दोनों छूते हुए कतराते हैं। शायद मेरा चेहरा बहुत सफेद सा हो गया है और वह डर सी गई है
मीनू कुर्सी से उठकर मेरे पास बहुत पास आ गई। उसने मेरे गले में अपने दोनों हाथ डाल दिये। उसकी आंखों में अजीब सा विस्मय हैमुझे भ्रम होता है कि वह मेरे और केशी के बारे में सब कुछ जानती है वे बातें जो सिर्फ मेरी हैंजिन्हें मैं अपने से भी छिपा कर रखती हूं। किन्तु वह कभी मुझसे कहेगी नहीं  वह बडी बहन हैइसलिये वह  मार्टर  है। वह हमेशा मुझे अपने से बहुत छोटा समझती रहेगी
ये कुछ ऐसे क्षण हैंजब मैं मीनू से घृणा करती हूं बचपन से करती आई हूं
कमरे में सन्नाटा खिंचा रहा। न जाने हम दोनों कितनी देर तक ऐसे ही बैठे रहे
'' तुम बुरा मान गईं
'' उसका स्वर भीगा - सा था
'' तुम पागल हो मीनू! ''
'' इस तरह हॉस्टल में अकेले कब तक रहोगी?''
मैं ने उसकी ओर हंसते हुए देखा

'' अब मुझे डर नहीं लगता
''
मीनू कुछ बोली नहींचुपचाप अपनी ऊंगलियों को मेरे बालों में उलझाती रही। उसकी आंखे बहुत उदास हैं। वह मुझसे बडी हैलेकिन ऐसा नहीं लगता कि मैं उससे छोटी हूं। लगता हैजैसे दिन बीतते जाते हैं और वह वहीं एक ही स्थान पर खडी रही हैजहां वह बरसों पहले थी। फिर भी उसके सामने मैं अपने को हमेशा ही बहुत हीन पाती हूं। लगता है वह सब कुछ हैमैं उसके सामने कुछ भी नहीं। यह उसका बडप्पन नहीं  वह होता तो कुछ भी मुश्किल नहीं थातब मैं उससे लड लेतीउसे दोष देकर छुटकारा पा लेती। लगता हैजैसे वह कहीं बहुत ऊंची दीवार पर बैठी है और मैं उसे सिर उठाकर विस्मित आंखों से देख रही हूं
'' रूनी बहुत देर हो गयीतुम कपडे नहीं बदलोगी?'' मीनू उठ खडी हुई।
'' 
ठहरो चलती हूं। यह स्वेटर किसका है?'' मेरी निगाहें सामने सोफा पर टिक गईं जहां हल्के सलेटी रंग के ऊन की लच्छियां और उनमें उलझी सलाइयां पडीं थीं।
'' 
केशी का पुलोवर है  पूरी बांहों का।'' बुना हुआ हिस्सा उठा कर उसने मेरे हाथों में रख दिया।
'' 
कैसा है कल ही शुरु किया है।'' मैं ने उसे छुआ नहींएक लम्बे क्षण तक उसे अपने हाथों पर वैसे ही पडा रहने दिया मेरे हाथ उसके नीचे दब गये हैं। उसके नीचे दब कर सिकुड से गये हैं। मीनू की स्निग्ध,शांत आंख और मेरे कांपते हाथों के बीच केशी का अधबुना स्वेटर एक लम्बे पल के लिये बिना हिले डुले पडा रहता है।
मैं ने आज तक केशी को फुल स्लीव का पुलोवर पहने नहीं देखा। पता नहीं उस पर कैसा लगेगा?
मीनू ड्राईंगरूम में चली गई। मैं कुछ देर तक उस कमरे में अकेली बैठी रहती हूं। सब ओर सन्नाटा है। केवल किचन से प्यालों और प्लेटों की हल्की खनखनाहट सुनाई दे जाती है। दरवाजे क़ी जाली पर फीकी सी चांदनी उतर आई है
खिडक़ी के परे बरामदा हैलाल बजरी की सडक़ है। उसके पीछे मोटर रोड को लांघ कर पहाडी ती हैजिसके टीले लॉन से दिखाई देते हैं और लॉन में पत्तियां हैंहवा में सरसराती घास है
'' तुम अभी तक यहां बैठी हो?'' मीनू के स्वर में हल्की सी झिडक़ी थी
। मैं चौंक गई। केशी का स्वेटर अब भी मेरी गोद में पडा था
'' मीनू क्या झाडियों में बेर आ गये?''
'' अभी 
कहाँकहीं दिसम्बर में जाकर पकेंगे। याद नहीं पिछले साल इन्हीं दिनों हम पहाडी में पिकनिक पर गये थे। बेर खाकर शैल का गला पक आया था''
'' वे कच्चे थे
तुमने पके बेर नहीं खायेबिलकुल काफल जैसे मीठे होते हैं मीनूशिमले के काफल याद हैं?''
'' और खट्टे दाडू  तुम उनका लाल रस अपनी उंगली पर लगाकर कहती थीं यह मेरा खून है
'' और मां डर जाती थीं''
हम उस क्षण भूल गये कि इन बरसों के दौरान ढेर सी उम्र हम पर लद गयी है कि बरसों पहले उसका विवाह हुआ था और मैं एक बच्चे की मां हूं। हम दरवाजे पर खडे ख़डे देर तक एक दूसरे को वे बातें याद दिलाते रहेजो हम दोनों को मालूम थींजिन्हें हमने कितनी बार दुहराया थाकिन्तु हर बार यही लगता था कि हम उन्हें भूल गये हों,हर बार उन्हैं दुबारा याद करने का बहाना सा करते थे
'' कल तुम्हारा ऑफ डे है  हम लोग पहाडी पर जायें तो कैसा रहे?''
'' 
सच! '' मैं ने खुशी से मीनू का हाथ पकड लिया।
'' 
केशी से कहेंगे वह अपना ग्रामोफोन ले चले बिलकुल पिछले साल की तरह।''
'' 
रूनीइट विल बी वण्डरफुल सच बिलकुल पिछले साल की तरह।''
पिछला साल  एक ठण्डीबर्फीली सी झुरझुरी मेरी पीठ पर सिमट आई वह सितम्बर का महीना थामैं शैल को लेकर दिल्ली आई थीसब कुछ पीछे छोड ई थीअपना घर बार अपनी गृहस्थी। सबने यही समझा था कि मैं कुछ दिनों के लिये रहने आई हूं। कुछ दिन रहूंगी और फिर वापस चली जाऊंगी। यही सितम्बर का महीना था  हम पहाडी पर पिकनिक के लिये गये थे बेर की झाडियों के पीछे मैं ने साहस बटोर कर मीनू से पहली बार बात कही थीजो इतने दिनों से मैं अपने में छिपाती चली आ रही थी। मीनू ने समझा था मैं हंसी कर रही हूंकिन्तु अगले पल जब उसने मेरे चेहरे को देखा तो वह चुप रही थीकुछ भी नहीं बोली थी एकदम फटी फटी आंखों से मुझे निहारती रही थी
कल उस बात को बीते एक साल हो जायेगा। कल हम फिर पिकनिक के लिये जायेंगे
गेस्टरूम की बत्ती जली है। मैं दरवाजे के पास जाकर ठिठक जाती हूंपीछे देखती हूं। फाटक के पास चांदनी में मेरी छाया लॉन के आर पार खिंच गई है। लगता हैरात सफेद हैबंगले की छतदूर पहाडी क़े टीलेघस पर एक दूसरे को काटती छायाएं  सब कुछ सफेद हैं। घास के तिनके अलग अलग नहीं दीखते एक हरा सा धब्बा बन कर पेडों के नीचे वे एक दूसरे के संग मिल गये हैं
यहां से उस कमरे का कोना दीखता हैजिसमें मीनू और केशी सोते हैं  कोना भी नहींकेवल दीवार का एक टुकडा जो झाडियों से जरा दूर है लेकिन लगता है जैसे झाडियां अंधेरे के संग संग दीवार के पास तक खिसक आई हैं। एक क्षण के लिये भ्रम होता है कि मैं भूल से यहां आ गई हूंकि यह मीनू का बंगला नहीं हैवह लॉन नहीं है,जिसके कोने कोने से मैं परिचित हूं। जब कभी कोई पक्षी झाडियों से बाहर निकल कर उडता हैउसके डैनों की छाया घूमते हुए लहू की तरह चांदनी पर फिसलने लगती है
कमरे में दबे पांवों से आई। मेरे पलंग के पास शैल का बिस्तर लगा था। चप्पल उतार कर मैं धीरे से उसके पास बैठ गई। देर तक उसकी मुंदी आंखों को देखती रही एक बार उसने आंखें खोलकर मुझे देखा था केवल निमिष भर के लिये किन्तु नींद ने दूसरे ही क्षण उसकी पलकों को अपने में ओढ लिया था
बत्ती बुझा कर मैं अपने बिस्तर पर लेट गयी। चांदनी इतनी साफ है कि बुक केस पर रखी केशी की किताब का टाइटल भी अंधेरे में चमक रहा है   टाइमस्पेस एण्ड आर्किटैक्चर। बाहर की खुली खिडक़ी पर शैल के झूले की रस्सी टंगी है। उसकी छाया खिडक़ी की जाली पर तिरछी रेखाओं सी पड रही है। जब हवा का झौंका आता हैतो ये रेखाएं मानो डरकर कांपती हुई एक दूसरे से सट जाती हैं
न जाने क्यों मेरा दिल तेजी से धडक़ने लगता है। शायद मेरा भ्रम रहा होगा और मैं सांस रोके लेटी रहती हूं। कमरे की चुप्पी में एक अजीब सी गरमाहट है जैसे कोई चीज दीवारों से रिस रिस कर बहती हुई मेरे पलंग के इर्द गिर्द जमा हो गयी हो। लगता है जैसे पास लेटी शैल की सांस मेरे पास आते आते भटक जाती है और मैं उसे सुन नहीं पाती
सुनती हूं  कुछ देर ठहरकरकुछ निस्तब्ध पलों के बीच जाने के बाद दुबारा सुनती हूं। पहला भ्रम महज भ्रम नहीं था। बीच के गलियारे में धीमी सी आहट हुई है। कुछ देर तक सन्नाटा रहता है। कई मिनट इसी तरह अनिश्चित प्रतीक्षा में बीत जाते हैं। बाहर का दरवाजा हवा चलने से कभी खुल जाता हैकभी बन्द हो जाता है। जब खुलता है तो गलियारे में धूल से सनी पत्तियां दीवार से चिपटी हुई तितलियों की तरह उडने लगती हैं
गलियारे के सामने लाइब्रेरी की बत्ती जली हैखूंटी से मीनू की शॉल उतार कर मैं ने ओढ ली। बाहर आई नंगे पांव। लाइब्रेरी का दरवाजा खुला था। टेबललैम्प के हरे शेड के पीछे केशी का चेहरा छिप गया है सोफा पर केवल उसकी टांगे दिखाई देती हैं। सामने तिपाई पर कोन्याक की बोतल और खाली गिलास पडे हैं उनकी छाया हू ब हू वैसी ही स्टिल लाइफ की तरह दीवार पर खिंच आई है। बिलकुल चुप,बिलकुल स्थिर
'' तुम अभी सोई नहीं?''उसने मुझे देख लिया था। मैं कुछ देर तक चुपचाप देहरी पर खडी रही।
'' 
इतनी रात यहां क्या कर रहे हो? '' वह सोफा पर बैठ गया। उसकी उंगली अभी तक किताब के पन्नों के बीच दबी थी।
'' 
मीनू को पसन्द नहीं कि मैं उसके कमरे में पियूं। रात को मैं अकसर यहां आ जाता हूं।''
'' 
यहीं सोते हो?'' मेरा स्वर कुछ ऐसा था कि खुद मुझसे नहीं पहचाना गया।''
'' 
कभी कभी  एनी वेइट हार्डली मेक्स एनी डिफरेन्सइज ऌट?''उसने धीमे से हंस दिया। मैं कभी उसकी ओर देखती रही। बाहर अंधेरे में बजरी की सडक़ पर भागती पत्तियों का शोर हो रहा था। कुछ देर तक हम दोनों रात की इन अजीबखामोश आवाजों को सुनते रहे।
'' मैं तुम्हारे कमरे तक आया था फिर सोचाशायद तुम सो गई हो।''
'' 
कुछ कहना था?''
'' 
बैठ जाओ।''केशी का चेहरा पत्थर सा भावहीन और शान्त था। उसमें कुछ भी ऐसा नहीं थाजिसे मैं पढ पाती। उसकी छाया आधी ग्रामोफोन परआधी दीवार पर पड रही है। ग्रामोफोन और किताबों की शेल्फ के बीच एक छोटी सी मेज हैजिस पर रिकार्डों का बण्डल रखा हैजो शायद अभी तक नहीं खोला गया
'' 
ज़बलपुर से चिट्ठी आई है।''केशी ने मेरी ओर नहीं देखा। वह शायद यह भी नहीं जानता कि मैं उसकी ओर देख रही हूं।
'' 
तुमसे पूछना था कि क्या उत्तर दूं।'' उसने कहा।
मैं प्रतीक्षा कर रही हूं लेकिन केशी चुप है। वह भी शायद प्रतीक्षा कर रहा है।
'' 
तुम्हें क्यों भेजा है?''
'' 
पत्र तुम्हारे लिये हैसिर्फ लिफाफे पर मेरा नाम है।'' केशी ने जेब से लिफाफा निकाला और उसे ग्रामोफोन पर रख दिया।
'' 
इसे पढ लो।''
लिफाफे पर जो हस्तलिपी हैउसे पहचानती हूँ। उसे देखकर जिस व्यक्ति का चेहरा आंखों के सामने घूम जाता हैउसे पहचानती हूँ। क्या मैं कभी अपने अतीत से छुटकारा नहीं पा सकूंगी वह हमेशा छाया की तरह पीछे आता रहेगा?
'' पढाेगी नहीं?''
'' क्या होगा?''
केशी हताश भाव से मुझे देखता है मैं जानती 
हूँवह क्या सोच रहा है
'' तुम्हें बुलाया है
''
'' जानती 
हूँ।''
'' वह एक बार शैल को देखना चाहते हैं
''
'' वह शैल के पिता हैं जब आकर देखना चाहें देख लें अपने संग ले जाना चाहें ले जायें मैं रोकूंगी नहीं
''
मैं रोकूंगी नहीं यही मैं ने कहा था
। केशी निर्विकार भाव से मुझे देखता रहा था
वह सोफा से उठ खडा हुआ। मैं अपनी कुर्सी से चिपकी बैठी रहती हूँ।मुझे लगता हैमैं रात भर इसी कुर्सी पर बैठी रहूंगीरात भर केशी खिडक़ी के पास खडा रहेगा
'' रूनीतुमने सोचा क्या हैक्या ऐसे ही रहोगी?''
मेरी आंखें अनायास उसके चेहरे पर उठ आईं थीं
। कुछ है मेरे भीतर जो बहुत निरीह हैबहुत विवश है। केशी उसे नहीं देखतादेखता हैतो भी शायद आंखें मूंद कर। इस क्षण भी वह चुप है। उसकी भावहीन,पथरीली आंखों में कुछ भी ऐसा नहीं हैजिसे मैं ले सकूंजो वह मुझे दे सके। मुझे अचानक शर्म आती हैअपने परअपनी कमजोरी पर और मैं हंस पडती हूँ। मेरी समूची देह बार बार किसी झटके से हिल उठती है
'' रूनी! ''
केशी का मुख एकदम म्लान सा हो उठा था
। उसका स्वर मुझे अजीब सा लगा था। मैं हंसते हंसते सहसा चुप हो गयी। वह धीमे झिझकते कदमों से मेरे पास चला आया था। बीच में ग्रामोफोन थाग्रामोफोन पर लिफाफा रखा था
'' रूनीमुझे तुमसे कुछ और नहीं कहना है
। तुम चाहो तोअपने कमरे में जा सकती हो। ''
मैं कुछ नहीं कहती  मैं सिर्फ उसकी कमीज क़ा खुला कॉलर देख रही
हूँजिसके पीछे उसकी छाती के भूरे बाल बिजली की रोशनी में चमक रहे हैं। दूसरे कमरे में कभी कभी सोती हुई शैल की सांसे सुनाई दे जाती हैं। उन्हें सुनकर मन फिर स्थिर हो जाता है। लगता है उन नरम सांसों की आहट ने कमरे की हवा को बहुत हल्का सा कर दिया है
'' सुना हैतुम कुछ नये रिकॉर्ड लाए हो?''
'' 
हाँसुनोगी?''
'' 
अभी नहींशैल सो रही है।''
'' 
हम तुम्हारे हॉस्टल गये थे।''
'' 
हांमीनू ने कहा था। तुमने कार का हॉर्न बजाया था।''
'' 
तुमने सुना थातुम नीचे क्यों नहीं आईंहम पोर्च के बाहर खडे रहे थे।''
'' 
मैं सो रही थी। मुझे लगामैं सोते हुए सुन रही हूँ।''
कुछ देर तक हम चुप बैठे रहे। मुझे लगा हम दोनों किसी छोटे से स्टेशन के वेटिंग रूम में बैठे हैं। दोनों चुपचाप अपनी अपनी ट्रेनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। किन्तु बीच के इन लम्हों को हम अच्छी तरह गुजार देना चाहते हैं ताकि बाद में हम दोनों में से किसी को एक दूसरे के प्रति कोई गिलाकोई शिकायत न रहे
'' यू वोन्ट माइन्ड रूनी विल यू?'' किन्तु उसने मेरे उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की। मैं ने चुपचाप सिर हिला दिया।
ग्लास में कोन्याक ढालते हुए उसने मेरी ओर देखा था।
'' 
तुम्हें बुरा तो नहीं लगता रूनी?'' उसका स्वर बहुत धीमा सा कोमल हो आया था।
'' 
मीनू को बुरा लगता है। रात को वह मुझे अपने कमरे में नहीं पीने देती।''मैं चुपचाप उसकी ओर देखती रहती हूँ। लगता है इस क्षण भीजब वह मेरे सामने तिपाई पर झुका हुआ पी रहा है उसमें कुछ ऐसा हैजिसके केवल होने भर का आभास होता हैकिन्तु जो उंगलियों में आता आता फिसल जाता है। मैं उसका गोलपीला चेहरागालों की चौडीउभरी हुई हड्डियांतनिक गहरी उदास आंखें देख सकती हूँ। सिर के बाल धीरे धीरे उडते जा रहे हैंजिनके कारण माथा बहुत ऊंचा दिखाई देता है। कुछ चेहरे होते हैं जो तुरन्त अपना प्रभाव अंकित कर जाते हैं। केशी का चेहरा ऐसा नहीं था। उसमें कुछ भी ऐसा नहीं था जो दृष्टि को रोक सकेएकाएक स्तम्भित कर सके। वह चेहरा बहुत पुराना हैजिसे देखना नहीं होताकेवल पहचानना होता है। यह अजीब हैकिन्तु जब कभी मैं उसके चेहरे को देखती हूँपुराने पत्थरों पर खुदा  हायरोग्राम  याद हो आता है बहुत दूर किन्तु पहचाना सा
'' आज शाम मैं ने तुम्हें खिडक़ी से देखा था।'' उसने कहा।
'' 
कहाँ?''
'' 
तुम अंधेरे में लॉन में बैठी थीं मैं ने तुम्हें बंग्ले में आते देखा था। तुम फाटक के भीतर घुसी थीं। तुम घास पर बैठी रही थीं और भीतर किसी को मालूम नहीं हुआ कि तुम हॉस्टल से आ गई हो अंधेरे में घास पर बैठी हो। वे सब तुम्हारी राह देखते रहे थे।''
केशी ने अपने गिलास में कुछ और कोन्याक ढाल लीहालांकि अभी गिलास खाली नहीं हुआ था। वह मेरी ओर नहीं देख रहा  वह खिडक़ी के बाहर देख रहा हैमानों मैं अब भी कमरे में न होकर अंधेरे लॉन में बैठी हूँ।''
'' इन गर्मियों में शायद हम शिमला जायेंगे।''
'' 
हाँमीनू ने बताया था।''
'' 
तुम भी हमारे संग चलोगी?''मैं हंसने लगती हूँ। फिर हम खामोश हो जाते हैं। बाहर गलियारे में एक छोर से दूसरे छोर तक सूखे पत्ते भाग रहे हैं। हवा से दरवाजा कभी खुलता हैकभी बन्द होता है।
'' केशीएक बात पूछूँ? ''
'' 
क्या रूनी? ''
'' 
तुमने मुझे वह पत्र क्यों दिखायाक्या तुम सचमुच सोचते थे कि मैं वापस लौट जाऊंगी।''
'' 
यह तुम्हारी इच्छा है रूनी।''
'' 
और तुम? '' मैं हकला कर चुप हो जाती हूँ क्योंकि मैं जानती हूँ,आगे कुछ भी कहना बेकार है। लगता है हम दोनों एक ऐसी स्थिति में पहुंच गये हैंजहां शब्दों के कोई अर्थ नहीं रह जातेजहां हम बिना सोचे समझे एक दूसरे से झूठ बोल सकते हैंक्योंकि झूठ कोई मानी नहीं रखता। लगता है शब्दों का झूठ सच हमसे नहीं जुडा है  वे अपनी जिम्मेदारी पर खुद खडे हैं उस क्षण मुझे पहली बार पता चला कि जो शब्द हम बोलते हैं उस क्षण मुझे पहली बार पता चला कि जो शब्द हम बोलते हैंवे कभी कभी अपने में कितने अकेले हो जाते हैं।
केशी ने धीरे से गिलास उठाया। गिलास के कांच और उंगलियों के बीच रोशनी का धब्बा कोन्याक पर धीरे धीरे तिर रहा है
'' तुम यहां हॉस्टल में कब तक रहोगी?''
मैं धीरे से हंस देती 
हूँ।
'' तुम मेरे बारे में कबसे सोचने लगे केशी?''
कोन्याक पर केशी की आंखें थिर हैं  माथे पर पसीने की हल्की झांई उभर आई है
। उसके होंठ गिलास से चिपके हैं वह पी नहीं रहा
वह पी नहीं रहा और मैं चुप बैठी हूँ और मुझे लगा कि मुझे कुरसी से उठ जाना चाहिये और अपने कमरे में चला जाना चाहियेफिर भी मैं बैठी रही और मैं कुछ भी नहीं सोच रही थी और मुझे जरा अजीब लगा था कि मीनू अपने कमरे में सो रही है और इतनी रात गये मैं केशी के कमरे में बैठी हूँ और दूसरे कमरे में शैल है जो कल मुझे अपने बिस्तर के पास देख हैरान हो जायेगी और मुझे धीरे धीरे बहुत देर तक ढेर सी खुशी हो रही है कि कल शाम को मैं वापस अपने हॉस्टल लौट जाऊंगी  वहां मिसेज हैरी हैंमेरा अकेला कमरा है निखिल है ये सब इस बंगले की परिधि से बाहर हैंकेशी के ग्रामोफोन सेग्रामोफोन पर रखे लिफाफे से बाहर हैं वे मेरा अतीत नहीं जानते,और मुझसे कभी कोई ऐसा प्रश्न नहीं पूछतेजिसका कोई उत्तर नहीं है  मेरे पास नहीं है
निखिल केशी से कितना अलग है! निखिल का सम्बन्ध बहुत सी चीजोंसे है  यदि हम उन्हें समझ लें तो निखिल को जानना सहज है। केशी निखिल नहीं है उसके डिजाइनउसके रिकॉर्डसब उससे अलग हैं;उसे समझने के लिये केवल उसके पास ही जाया जा सकता हैऔर वह चुप है
मैं ने एक बार केशी से पूछा था कि वह आर्किटैक्ट हैउसे क्लासिकल म्यूजिक़ से इतना लगाव कैसे उत्पन्न हो गया?
''देयर इज स्पेस, '' उसने बहुत धीरे से अंग्रेज़ी में कहा था

'' स्पेस? '' मैं आश्चर्य से उसकी ओर देखती रही थी

'' 
हाँस्पेस दोनों ही अपने अपने ढंग से छूते हैं'' उस क्षण उसके होंठों पर झिझकती सी मुस्कुराहट सिमट आई थी
मैं ने उसकी आंखों में वह अजीब सी दूरी देखी थीजो उस बूढे अंग्रेज की आंखों में थीजिसने हमें सिमिट्री के भीतर जाने से रोक लिया था। तब मैं बहुत छोटी थी। एक शाम अपने नौकर के संग सैर करती हुई शिमले में संजौली की सिमिट्री तक चली गई थी। चारों तरफ पहाडियां थींबडे बडे पत्थरों के बीच उगती लम्बी घास थी। हम कब्रों को देखना चाहते थेलेकिन सिमिट्री का फाटक बन्द था। कुछ देर बाद एक बूढा अंग्रेज हमारे पास आया था। उसने हमसे पूछा था कि हम वहां सिमिट्री के सामने क्यों खडे हैं। '' इसका फाटक क्यों बन्द है?'' मैं ने पूछा था
'' हमेशा बन्द रहता है
'' उस अंग्रेज ने हंसते हुए कहा था, '' सो लेट द डेड मे लाई इन पीस''
आज बरसों बाद भी मैं उस बात को भूली नहीं हूं आज भी जब कभी केशी  स्पेस  की बात करता हैतो उसकी आंखों में वही आलंघ्य,अपरिचित दूरी का सा भाव घिर आता हैजो बरसों पहले मैं ने उस अंग्रेज की आंखों में देखा था और मुझे लगता है कि सामने बन्द फाटक हैजो कभी कोई नहीं खोलेगाकब्रें हैं पहाडी हवा हैऔर पत्थरों के बीच लम्बी घास हैजो हवा में कांपती हैधीरे से मेरे कानों में कह रही है - '' लेट द डेड लाइ इन पीस
गलियारा पार करके मैं अपने कमरे में लौट आई थी अपने बिस्तर पर लेटी रही थी। न जाने कितने मिनट गुज़र गये। देर तक लॉन में झिंगुरों का स्वर सुनाई देता रहा। परदे के रिंग चांदनी में बडे बडे छल्लों से चमक रहे हैंऔर जब हवा चलती है तो धीरे से खनखना उठते हैं
केशी के कमरे की बत्ती का आलोक अधखुले दरवाज़े से निकल कर मेरे संग संग भीतर चला आया है। बंगले के परे लॉन के परे पहाडी मौन का है इस समय भी वहां चांदनी फैली होगी ह्न झाडियों परपुराने पत्थरों पर कोई नहीं जानेगा कि कहां टीलों और सदियों पुरानी चट्टानों के बीच एक बेर की झाडी है पिछले साल उस झाडी क़े पीछे मैं ने मीनू से कुछ कहा थावे शब्द आज भी कहीं कच्चे बेरों के संग पडे होंगे
आधी रात को सहसा मेरी आंख खुल गयी थी। शायद खिडक़ी के सामने झूले की रस्सी की परछांई को देखकर मैं डर गयी थी। रजाई उठाने के लिये मैं ने अपना हाथ आगे बढाया था  क्षण भर के लिये मेरे हाथ कमरे के अंधेरे में फैले रहे थे। मैं एकाएक आतंकित सी हो उठी थीमुझे लगा था जैसे मेरी टांगे एकदम बर्फ सी ठण्डी हो गयी हैं। मैं ने शैल के बिस्तर की ओर देखा वह सो रही थीउसका आधा चेहरा कम्बल में छिपा थाआधे चेहरे पर फीकी सी चांदनी सरक आई थी
मैं बिस्तर से उतर कर कमरे की देहरी तक चली आई गलियारे में निपट अंधेरा था। लायब्रेरी की बत्ती गुल हो गई थीलेकिन दरवाज़ा खुला था मैं देहरी पर खडी रही
एक आवाज है  आवाज भी नहींकेवल एक प्रवाह हैजो टूट रहा है,जितना टूट रहा हैउतना ही ऊपर उठ रहा है हवा से भी पतली एक चमकीली झांई धीमेबहुत धीमेएक उखडीबहकी हुई सांस की मानिन्द मेरे पास चली आती है। चली आती हैऔर उसे कोई नहीं रोकता,जैसे वह अपना दबाव खुद है। खुद अपने दबाव के नीचे खिंच रही हैलगता है जैसे हवा स्वयं एक घूमते हुए घेरे के बीच आ गई हो भूल से फंस गई हो और उडने के लियेउस घेरे से मुक्ति पाने के लिये अपने पंख फडफ़डा रही हो
'' केशी।'' मैं ने धीरे से कहा - '' केशी '' - मैं अंधेरे में खडी रही-देहरी पर। मुझे लगता है जैसे मेरे भीतर बादल का एक श्यामल टुकडा आ समाया है वह बूंद बूंद टपक रहा है। मैं उसके नीचे खडी हूं और भीग रही हूं देर तक खडी भीग रही हूँ!
शायद कोई लांग - प्लेयिंग रिकॉर्ड रहा होगा क्योंकि जब तक मैं सो नहीं गई वह बजता रहा था। आज केशी नये रिकॉर्ड लाया है जब तक वह सब नहीं बजा लेगा तब तक उसे शान्ति नहीं मिलेगी
मैं करवट बदल कर लेट जाती हूँ मैं ने अपना एक हाथ शैल के तकिये के नीचे रख दिया और मैं धीरे धीरे उसके पास खिसक आतीहूँ। मैं चाहती हूँ कि उसकी देह की गरमाई अपने में खींच लूं
चांदनी का एक चौकोरबित्ते भर का टुकडा केशी की किताब पर पड रहा है  स्पेसटाइम एण्ड आर्किटैक्चर  । मैं देर तक उस टाइटल को देखती रहती हूँ। फिर पलकें झुक जाती हैं सोने के पहले केवल एक धुंधला सा विचार बह आता है
कल हम सब पिकनिक करने पहाडी पर जायेंगे
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