आज मनप्रीत हारी हुई सी, घर के एक अंधेरे कोने में अकेली बैठी है। वह तो आसानी से हार मानने वालों में से नहीं है। आज तो पूरा कमरा, पूरा घर ही उसकी पराजय का पर्याय सा बना हुआ है। सूना, अकेला, सुनसान सा घर। अभी कल तक तो घर में सब कुछ था - खुशी, प्रेम, विश्वास! हत्या हुई है! भावनाओं की हत्या! किन्तु मनप्रीत ने कब किसकी भावनाओं का आदर किया है? अपने वर्तमान के लिये वह किसे उत्तरदायी ठहराये? वर्तमान कोई किसी साधु महात्मा द्वारा जादू के बल पर अचानक हवा में से निकला हुआ फल या प्रसाद तो हैं नहीं। अतीत की एक एक ईंट जुडती है तब कहीं जा कर बनता है वर्तमान। अतीत! कैसा था मनप्रीत का अतीत? कैसा था उसका बचपन; कैसी थीं वो गलियाँ जहाँ वह खेली थी? भला लंदन में भी कोई गलियों में खेलता है? यँहा तो प्रत्येक काम पूरे कायदे और सलीके से होता है। यदि खेलना हो तो लेजर सेन्टर जाओ। वहाँ स्विमिंग करो, बेडमिन्टन खेलो, जिम में व्यायाम करो, जो भी करो एक दायरे में बंध कर। दायरे से नियम से बाहर कुछ नहीं कर सकते। यही बंधकर रहना ही तो मनप्रीत को मंजूर नहीं था। यदि उसका बस चलता तो संसार के सारे नियमों को ध्वस्त कर देती, कानून की किताबों को जला देती। मनप्रीत की सोच तो सदा से ही यही रही है , यह मनुष्य जन्म क्या बार बार मिलता है? अरे जीवन के मजे ले लो! नहीं तो भगवान भी वापस धरती पर भेज देगा कि जाओ, अभी कितने काम करने बाकी हैंतुमने चरस नहीं चखी, सिगरेट का धुंआ नहीं उडाया, शराब का स्वाद नहीं जाना यू बोर! गो बैक अगेन! क्या वह जीवन की घडी क़ो वापस चला सकती है? क्या जो कुछ घट गया है, उसे जीवन की स्लेट से पौंछा जा सकता है? क्या उसे पश्चाताप की अनुभूति हो रही है? नहीं नहीं उसने कोई गलत काम नहीं किया। भला वह गलत काम कर ही कैसे सकती है? '' नी प्रीतो! सुधर जा। एह मुण्डयां नाल घुमणा फिरणा बन्द कर दे। कुल्च्छणियें, सारी उमर पछतायेंगी। मां उसे तो बस एक ही काम था कि वह प्रीतो को समझा सके कि वह पछताएगी। क्या यह मां की बद्दुआ है जो उसे पश्चाताप के आंसू पिला रही है। मां को प्रीतो का गोरे लडक़ों से मेल-जोल कभी भी सहन नहीं होता था। '' ओए तू गाय के मीट खाणे वालों से कैसे बोल लेती है? दुनिया आवाज क़ी गति से तेज उडान भर रही है और मां अब तक गाय के चक्कर में पडी है। कितनी अनपढ है मां भी, बीफ को बीफ न कह कर गाय का मीट कहती है। मनप्रीत तो आज भी खाना पकाने के लिये रसोई में जाने के मुकाबले मैकडॉनल्ड का हैम्बरगर मंगवाना पसंद करती है। हैपी मील! बिग मैक! बेकन डबल चीज बर्गर! क्र्वाटर पाऊण्डर ! और जाने क्या-क्या ? शुरू में तो गैरी भी बुरा नहीं मानता था। फिर वह भी बाजार का बना खाना खा-खा कर बोर हो गया। गैरी स्वयं भी तो अपने परिवार का पहला विद्रोही था। उसके माता-पिता तो पूरे विक्टोरियन जमाने के उसूल मानने वाले ब्रिटिश परिवारों में से एक थे। गैरी अंग्रेज और काली लडक़ियों में अधिक रुचि नहीं लेता था। उसके दिमाग में बस एक ही बात बैठी हुई थी कि इन लडक़ियों में संस्कारों का क्षय होता जा रहा है। गैरी ब्रिटिश रेल्वे में ड्राइवर है। बस जी सी एस ई तक पढाई की है यानि कि एस एस सी। इंग्लैण्ड में डिग्रियों के पीछे भागने का सिलसिला भी तो भारतीय मूल के लोगों ने ही आकर शुरू किया है। मध्यमवर्गीय भारतीय अपनी संतान को जमीन-जायदाद तो दे नहीं पाता, बस पढाई और डिग्री ही उनके लिये जायदाद हो जाती है। अंग्रेज तो स्कूल की अनिवार्य शिक्षा के पश्चात किसी न किसी हाथ के काम में दीक्षा हासिल कर अपना जीवन शुरू कर देते हैं। गैरी की पहली गर्लफ्रेण्ड लिजा तो एक गोरी लडक़ी ही थी। स्कूल में उससे दो क्लास आगे थी- यानि उससे दो वर्ष बडी थी। स्कूली शिक्षा के साथ-साथ वे दोनों एक-दूसरे को यौनशिक्षा में भी पारंगत करने लगे। जब गैरी के माता-पिता ने आपत्ति की तो दोनों अलग-अलग रहने लगे। इंग्लैण्ड का भी अजब सिलसिला है कि सोलह वर्ष से कम उम्र की लडक़ी दुकान से सिगरेट नहीं खरीद सकती, किन्तु मां बन सकती है। वयस्क हुए विवाह नहीं हो सकता किन्तु मां बना जा सकता है। दोनों अभी काम तो करते नहीं थे। एक और टीनएजर माता-पिता।सोशल-सिक्योरिटी की सहायता जिन्दाबाद। दोनों को लगा कि जीवन की गाडी पटरी पर बैठने लगी है। पर ऐसे बचकाने रिश्तों की गाडी क़ब तक चलती? मनप्रीत के जीवन की गाडी भी तो अब पूरी तरह से पटरी से उतर चुकी है। गैरी की भाषा में डी-रेल हो गई है। गैरी और मैनी। हाँ गैरी और मनप्रीत के सभी दूसरे मित्र तो उसे मैनी कह कर ही पुकारते हैं। मैनी अब अकेली मैना हो गई है। गैरी अपनी बेटी रीटा और पुत्र कार्ल को अपने साथ ले गया है। विद्रोही प्रवृत्ति का गैरी भी मैनी के इस निर्णय का साथ अधिक दिनों तक नहीं दे पाया। मनप्रीत ने यह निर्णय लिया ही क्यों? यह बात भी सच है कि इंग्लैण्ड के अधिकतर युवावर्ग की ही भा/ति वह भी फुटबॉल के खेल की पागलपन की सीमा तक दीवानी है। आर्सेनल उसकी प्रिय टीम है और उसका सेन्टर फॉरवर्ड खिलाडी बीफी डेविड उसका प्रिय खिलाडी। ड़ेविड गैरी का मित्र भी है और ठीक गैरी की तरह उसे भी भारतीय मूल की लडक़ियां विवाहित जीवन को अधिक स्थायित्व प्रदान करने वाली लगती हैं। गैरी और डेविड एक ही स्कूल से पढे हैं। यदि मैनी गैरी को पसंद थी तो डेविड को जया। जया भी मैनी की भांति लन्दन में जन्मी थी। किन्तु उसकी परवरिश अधिक संस्कारयुक्त है। उसके माता-पिता ने बहुत नपे-तुले ढंग से अपनी पुत्री के व्यक्तित्व में इंग्लैण्ड और भारत के संस्कारों का मिश्रण पैदा कर दिया है। जया के व्यक्तित्व में एक ठहराव है, जबकि मैनी तो इतनी विरोधी प्रकृति की रही है कि डॉक्टर द्वारा तय किये गए समय से छ: सप्ताह पहले ही दुनिया में आ धमकी थी। कभी-कभी उसे जया से इर्ष्या भी होती। जया के चित्र समाचार-पत्रों की सुर्खियां बन जाते हैं। लाखों की आमदनी, महलनुमा घर। जया है भी तो भारतीय संगीत में पारंगत। भारतीय और पश्चिमी संगीत के फ्यूजन के शो करती है। उसके सी डी और कैसेट्स भी लाखों की संख्या में बिकते हैं। बेचारी मैनी। रेल्वे ड्राइवर की पत्नि। गैरी तो बस किसी तरह तीन बैडरूम का घर ही खरीद पाया है वह भी किश्तों पर। हर महीने पांच सौ पाउण्ड तो मॉर्गेज की किश्तों में निकल जाते हैं। मॉर्गेज और किश्तों का जीवन। मैनी स्वयं भी तो डेबेन्हेन्स में सेल्स एडवाइजर है। कितना विशाल स्टोर है। अस्थिरता मैनी के व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है। जब जी चाहा नौकरी की, जब चाहा छोड दी। पिछले दस वर्षों में सात नौकरियाँ बदल चुकी है। दो बार तो बच्चे होने पर ही नौकरियां छोडनी पडी थीं। कभी गैरी के साथ विदेश यात्रा पर जाने की छुट्टी नहीं मिली तो नौकरी से त्यागपत्र! आज तो सारा जीवन ही उसे त्यागपत्र थमा कर आगे बढ ग़या है। भूख, प्यास, भावनाएं एकाएक उसका साथ छोड क़हीं छुप से गए हैं। क्या अपनी गलतियों को स्वीकार करने का माद्दा मनप्रीत में है? उसने तो जीवनभर वही किया है जो उसके मन ने चाहा है। सामाजिक नियमों की उसने परवाह ही कब की? जया की खुशियों से मन ही मन त्रस्त रहने वाली मैनी जब रीटा और कार्ल को देखती तो मन में विचित्र सी प्रसन्नता का आभास होता। डॉक्टरों ने घोषित कर दिया था कि जया मां नहीं बन सकती है। प्रकृति के नियम भी तो विचित्र हैं। भगवान सबकुछ देकर भी कहीं न कहीं तो कटौती कर ही लेते हैं। डेविड को बच्चों का बहुत शौक है। उसका बस चलता तो गोलकीपर से लेकर सेन्टर फॉरवर्ड तक पूरी टीम ही घर में बना लेता। किन्तु उसका जया के प्रति समर्पण इतना संपूर्ण है कि उसने अपने मन की बात को जया तक कभी पहुँचने ही नहीं दिया। जया और डेविड के साथ अपनी दोस्ती का रौब मैनी सब पर गांठती ही रहती। जया को भी बालसखि मैनी और उसके बच्चों से मेलमिलाप भाता है। एक विचित्र अपनेपन का अहसास होता उसे। वह कार्ल और रीटा के लिये क्रिसमस के उपहार खरीदना कभी नहीं भूलती, और यह दोनों बच्चे भी बेसब्री से अपने जन्मदिन और क्रिसमस की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि जया आंटी मंहगे-मंहगे उपहार जो देती हैं। डेविड कहीं भी मैच खेलने जाता तो जया के साथ मैनी और गैरी भी सदा ही मैच में उपस्थित रहते। डेविड जब गेंद लेकर विपक्षी पाले की ओर भागता तो तीनों लगभग पागलों की भांति तालियां बजा-बजा कर प्रसन्नता का प्रदर्शन करते। मैच जीतने के पश्चात डेविड जया को गले मिलता और उसका चुम्बन लेता। गले वह गैरी और मैनी के भी मिलता और मैनी को गाल पर चुम्बन देने का प्रयास करता तो मैनी अतिउत्साह का प्रदर्शन करते हुए डेविड के होंठों को चूम लेती। गैरी अपनी पत्नी के पागलपन से परिचित था, किन्तु इस बात को लेकर उसके मन में कभी संदेह या विशाद नहीं होता है। डेविड सदा से मैनी का हीरो रहा है। और वह, हर प्रकार से उसे रिझाने का यत्न करती, किन्तु सामने से कोई अनुकूल प्रतिक्रिया न मिलने के कारण मन मार कर रह जाती है। यदि डेविड मैनी में थोडी सी भी रुचि दिखाए तो वह एक बार फिर सारी सीमाएं तोडने को तैयार है। कभी-कभी हैरान भी होती है मैनी कि अंग्रेज होकर भी डेविड पारिवारिक बंधन और सीमाओं का इतना आदर कैसे कर लेता है। यँहा तो हर कोई किसी भी दूसरे के बिस्तर में घुसने को तैयार रहता है। वैसे भी डेविड के बारे में खासी चटपटे समाचार तो वह समाचारपत्रों में पढती ही रहती है। फिर भी वह समझ नहीं पाती कि जया में ऐसा क्या आकर्षण है जो कि डेविड को उसके व्यक्तित्व के साथ बंधे रहने पर मजबूर कर देता है? '' मैनी मुझे हमेशा एक अपराध बोध सालता रहता है । पांच वर्ष हो गए हमारे विवाह को। हम दोनों परिवारनियोजन के लिये कोई सावधानी नहीं बरतते रहे फिर भी। पिछले एक वर्ष से तो नार्थविक पार्क हस्पताल, प्राईवेट नर्सिंग होम और जाने कहाँ-कहाँ चक्कर लगा चुकी हूँ। डेविड को बिना बताए भारत से कितने गण्डे-तावीज भी मंगवा चुकी हूँ। अब तो डॉक्टरों ने साफ-साफ कह दिया है कि मैं माँ नहीं बन सकती हूँ। तो तुम दोनों कोई बच्चा गोद क्यों नहीं ले लेते? मैं तो इसके लिये तैयार हूँ किन्तु डेविड को आपत्ति है। उसके हिसाब से बच्चा अपना ही होता है। उधार के बच्चे में वो बात नहीं होती। उसे शक है कि वह उस बच्चे के साथ कभी भी उतना नहीं जुड पाएगा जितना कि एक प्राकृतिक लालन-पालन के लिये आवश्यक है। तो क्या हल सोचा है तुम दोनों ने? मैं ने तो यँहा तक सुझाया था कि हम किराये की कोख का इस्तेमाल कर सकते हैं। किराये की कोख! हाँ! आज विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि आर्टिफिशल इनसेमिनेशन के जरिये कुछ भी हो सकता है। इस पर डेविड की क्या प्रतिक्रिया है? मैनी का दिल जोरों से धडक़ने लगा था। जया भी स्थिति को समझ रही थी। उसने बात आगे बढाई- ''तुम तो जानती हो कि डेविड चाहे तो गोरी लडक़ियों की कतार लग जाएगी, उसके बच्चे की माँ बनने के लिये। दरअसल उसे इन गोरी लडक़ियों पर थोडा भी विश्वास नहीं है। क़ल क्या गुल खिलाएं । कोर्ट में कोई केस फाइल कर दें यँहा तो पैसे के लिये बात-बात पर अदालत के दरवाजे पर पहुँच जाते हैं लोग। मैंने तो सुना है कि ऐसे मामलों में सब कुछ पहले से ही लीगल तरीके से तय कर लिया जाता है। ''डेविड सोचता है कि यदि मेरा और डेविड का बच्चा होता तो एंग्लो इंडियन शक्ल का होता। इसलिये वह किसी इंडियन लडक़ी की तलाश में है, ताकि देखने में भी वह बच्चा हमारा बच्चा लग सके।''उडान को धरती पर ले आई जया, किस सोच में डूब गई ? यार ये काम तू क्यों नहीं कर लेती? तेरा बच्चा तो वैसे भी मुझे अपना सा लगेगा। सोच तेरा और डविड का बच्चा हमारा वारिस बनेगा। जया चली तो गई, परन्तु मैनी के पूरे व्यक्तित्व को झिंझोड ग़ई। चार-पाँच दिनों तक मैनी अपने परिवार से कटी रही। गैरी ने सोचा शायद मासिक धर्म के कारण ऐसा है। महीने के इन चार-पाँच दिनों मैनी या तो ऐसे ही चुप हो जाया करती है या फिर चिडचिडी। चिडचिडेपन के मुकाबले चुप्पी कहीं बेहतर है। मैनी जैसे भीतर ही भीतर अपने आप से लड रही थी। डेविड को देख कर उसके मन में हमेशा ही कुछ कुछ होता रहा है। वह समाज के दकियानूसी नियमों को वैसे ही कब मानती है? किन्तु गैरी डेविड का मित्र है और डेविड ने इस मित्रता का सम्मान सदा ही बनाए रखा है। जया की एक बात बार-बार सुनार की ठुक-ठुक की तरह उसके दिमाग पर प्रहार कर रही थी, सोच तेरा और डेविड का बच्चा हमारा वारिस बनेगा। क्या गैरी मान जाएगा? और फिर एकाएक उसके भीतर एक निर्लज्ज कामना जाग उठी, क्या डेविड उसे प्राकृतिक तरीके से गर्भवती बनाने पर राजी हो जाएगा? यदि ऐसा हो तो उसे कोई एतराज नहीं। बल्कि वह तो जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि का अहसास पा जाएगी। परन्तु क्या डेविड? बात पहले डेविड से करे या गैरी से? कभी दूध वाला भैया हुआ करता था गैरी। डूध की गाडी में लोगों के घरों तक दूध पहुंचाया करता था। वह हिन्दी का एकमात्र शब्द ही समझ पाता था दूधवाला। एक भारतीय घर में वह जब दूध की बोतलें छोडने जाया करता था तो वहां एक बच्चा अपनी मां को आवाज देकर कहता, मम्मी दूध वाला आया है। दूध वाला गैरी अचानक ब्रिटिश रेल्वे में डा्रइवर बन गया। यही तो कमाल है इस देश का। मनुष्य अपने जीवन की गाडी क़ी पटरी कभी भी बदल सकता है। भारत की तरह नहीं कि एक नौकरी पकडी तो सारा जीवन उसीसे जुडे रहे। आज गैरी का रेस्ट डे है यानि कि छुट्टी। पर आज भी गैरी ओवर टाईम के चक्कर में गया हुआ है। उसे जब जब छुट्टी के दिन काम पर बुलाया जाता है तो वह अवश्य जाता है। इसी तरह थोडी अतिरिक्त कमाई हो जाती है और परिवार की छोटी-छोटी आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं। गैरी की रेल पटरी पर चल रही है और मैनी का वैचारिक द्वन्द्व कल्पना की उडान भरने में व्यस्त है। उसने निर्णय ले लिया। वह डेविड से की उडान भरने में व्यस्त है। उसने निर्णय ले लिया। वह डेविड से बात करेगी।दूसरा पन्ना फोन जया ने उठाया था। "जया, मैं मैनी।" जया के कान कुछ सुनने को बेचैन हो रहे थे। उसने जानबूझ कर इतने दिन मैनी को फोन नहीं किया था ताकि मैनी को सोच-विचार करने का समय मिल जाए। ''हाँ जी, क्या हो रहा है? बच्चों के क्या हाल हैं? बाकि सब तो ठीक है, बस मुझे तुम जिस भंवर में छोड ग़ई हो, मैं उससे बाहर नहीं निकल पा रही हूँ। फिर क्या सोचा तुमने? गैरी से बात की? नहीं। गैरी से पहले मैं कुछ बातें डेविड के साथ करना चाहती हूँ। ठीक है, कल शाम को डेविड घर पर ही होगा। आ जाओ। नहीं जयाबात यह है कि मैं डेविड के बच्चे की मांमेरा मतलब है कि यदि मैं डेविड के बच्चे को जन्म देने वाली हूँ तो कम से कम हम दोनों को अकेले में कुछ बातें साफ करनी आवश्यक हो जाती हैं। कुछ पलों के लिये सोच में डूब गई जया, ठीक है तुम दोनों अकेले में बातें कर लेना। वैसे भी मुझे रिहर्सल के सिलसिले में जाना था, आने में देर भी हो सकती है। आज मैनी ने अपनी सबसे प्रिय ड्रेस पहनी है। बाल भी विशेष रूप से पर्म करवाए हैं और चश्मे के स्थान पर कॉनटेक्ट लैन्स लगाए हैं। ईमान डिगाने का पूरा प्रयत्न किया है मैनी ने। '' नहीं मैनी यह संभव नहीं है। जो तुम कह रही हो वह ठीक नहीं, फिर गैरी मेरा दोस्त है। उससे छिप कर यह करना मॉरली गलत होगा। मैंने जब से जया के साथ विवाह किया है मेरे कदम नहीं डगमगाए। तुम बहुत सुन्दर हो, कोई भी इन्सान तुम्हारे शरीर को पाकर गर्व का अहसास करेगा। पर यहां हालात एकदम अलग हैं। यह तुम किस सदी की बातें कर रहे हो डेविड? मैनी का निर्लज्ज अहम आहत हो गया था। मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूँ। निर्णय तो तुम्हें और मुझे करना है, इसमें जया और गैरी की तो कोई भूमिका है ही नहीं। मैनी, तुम एक बात भूल रही हो। तुम केवल गर्भधारण कर मेरे बच्चे को जन्म दोगी। उस बच्चे की माँ तो जया ही होगी। हाँ हम दोनों तुम्हारा पूरा खयाल रखेंगे, तुम्हें स्नेह देंगे, और इस काम पर होने वाले खर्चे के अतिरिक्त तुम मुझसे जो चाहोगी मिलेगा। डेविड ने आगे बढक़र एक हल्का सा चुम्बन मैनी के होंठों पर अंकित कर दिया। आज पहली बार ऐसा हुआ है कि डेविड ने स्वयं मैनी के होंठों को चूमा है। अन्यथा तो मैनी ही ऐसे अवसरों की तलाश में रहती थी। डेविड, क्या यह बच्चा उस एक पल की निशानी नहीं बन सकता जिसकी मुझे एक लम्बे अर्से से प्रतीक्षा है? क्या तुम्हारा यह स्नेह, कुछ पलों के लिये ही सही प्रेम या वासना ही सहीनहीं बन सकता? मैनी , मैं एक किराये की कोख की तलाश में हूँ। प्रेमिका सी पत्नी तो मेरे पास पहले से है, जया से मुझे किसी किस्म की शिकायत तो है नहीं। फिर तुम मेरे मित्र की पत्नी हो। मैं अपने मित्र पर वार नहीं कर सकता। हाँ यह तुम्हारा अहसान होगा हम दोनों पर। इसके लिये हम दोनों, मैं और जया, जीवन भर तुम्हारे ॠणी रहेंगे। स्टार, सन, र्स्पोट्स और डेली मिरर जैसे समाचारपत्र तो डेविड की एक भिन्न प्रकार की छवि दुनिया भर को दिखाते हैं। यह असली डेविड उस छवि से कितना अलग है। समाचारपत्र तो डेविड को कामदेव की तरह प्रस्तुत करते हैं - कभी किसी लडक़ी को चूमते हुए, तो कहीं अपना नग्न वक्ष दिखाते हुए, कभी लडक़ियों से घिरे हुए, कभी जया के वक्ष पर अपनी हथेलियां रखे। मैनी इस गोरखधन्धे को समझ नहीं पा रही है। यदि डेविड अपनी पत्नी के प्रति इतनी निष्ठा रखता है तो जब बच्चा हो जाएगा तो किस प्रकार का पिता बनेगा? जमाने से एकदम अलग। मैनी सोच रही थी कि वह डेविड को उसकी अनुपस्थिति में जी भर कर कोसेगी, किन्तु उसका हृदय इतनी शक्ति बटोर पाने में असफल हो गया। उसे डेविड पर और अधिक प्यार आने लगा। लगता है मैनी जैसे कोई निर्णय ले चुकी है। '' तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया? तुमने यह बात सोची भी कैसे? अरे! डेविड तुम्हारा मित्र है, अगर हम दोनों मिल कर जया और डेविड की सहायता नहीं करेंगे तो क्या कोई बाहर वाला आकर करेगा। हम भी बाहर वाले ही हैं। यह उनका आपसी मामला है। वो जो करना चाहें करें। परपर तुम क्यों अपने आप को इन चक्करों में डालती हो? अपना निजी मामला ही तो लेकर आई थी जया मेरे पास। अगर हम बाहर वाले होते तो हमारे सम्बंध इतने गहरे कभी न बन पाते। मैनी, तुम हालात को समझने की कोशिश नहीं कर रही हो।आल दिस इज ग़ोईंग टू हर्ट यू। हो सकता है कि तुम इस समय यह सोच कर खुश हो रही हो कि तुम डेविड के बच्चे की माँ बनने वाली हो। मुझे मालूम है कि पूरे इंग्लैण्ड की कोई भी लडक़ी या औरत डेविड के बच्चे के लिये माँ बन कर बहुत प्रसन्न होगी। मगर तुम यह नहीं समझ पा रही हो कि यह फैसला तुम्हें किस कदर तोड सकता है।बात दो दिन की नहीं है। पूरे नौ महीने हमारा सारा घर इस ख्याल के साथ लडता रहेगा कि हमारे घर में एक बच्चा आने वाला है जिसका बाप मैं नहीं डेविड है।यह सब इतना आसान नहीं है, जितना तुम समझ रही हो। गैरी, मेरे मन में ऐसी कोई बात नहीं है कि मैं डेविड के बच्चे की माँ बन कर कोई महान काम करने वाली हूँ। बात केवल सहायता की है। मैं जया और डेविड की सहायता करना चाहती हूँ। और तुम तो जानते हो कि जया मेरी कितनी प्यारी सहेली है। वह कार्ल और रीटा को कितना प्यार करती है। और सोचो समूचे देश में उन्हें मेरे अलावा किसी पर इतना विश्वास नहीं है। क्या यह हमारे लिये गर्व की बात नहीं है? इस झूठी शान और छलावे से बाहर आओ मैनी। तुम जया और डेविड के जीवन के बाहरी ग्लैमर के पीछे बौराई सी फिर रही हो।याद रखो, तुम मेरी पत्नी हो, एक रेल्वे ड्राइवर की, पच्चीस हजार सालाना पाउण्ड पगार वाला रेल ड्राइवर। हम इस देश के लाखों लोगों से बेहतर जीवन जीवन जी रहे हैं। रेल में कहीं भी जाना हो मुफ्त यात्रा, हमारे बच्चे अच्छी शिक्षा पा रहे हैं और मैं उन्हें अच्छे संस्कार देने की कोशिश में हूँ। तुम, बने बनाए घर की नींव हिलाने की कोशिश कर रही हो। बहुत पछताओगी। तुम भी गैरी! कैसी मिडल क्लास बातें करते हो। तुम सोचो हमारा बच्चा डेविड की सारी सम्पत्ति का मालिक बनेगा। मेरा बच्चा हमारा बच्चा ! यही तो समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि वो हमारा तो क्या तुम्हारा बच्चा भी नहीं रहेगा।मैनी।यह सब इतना आसान नहीं होता है। कल जब डेविड तुम से डॉक्यूमेन्ट पर हस्ताक्षर करवाएगा कि तुम होने वाले बच्चे से कभी मिलने की कोशिश नहीं करोगी, तुम्हारा उस पर कोई हक नहीं होगा, तुम उसे जताओगी नहीं कि तुम उसकी माँ होऔर बात केवल साइन करने की नहीं , जब वह सचमुच तुम्हें उस बच्चे से दूर कर देगा, तब तुम! तुम देखते रहना गैरी, मैं कैसे हालात को अपने पक्ष में कर लूंगी। देन, गो टू हैल! हैल!नर्क क्या इसी को कहते हैं? पति और बच्चे छोड ज़ाएं, सभी नाते रिश्तेदार किनारा कर लें और इन्सान अंधेरे बंद कमरे में अपने अस्तित्व से डरता रहे। यही तो है नर्क की वह आग जिसकी तपिश तो महसूस की जा सकती है पर जो दिखाई नहीं देती। आज उसे हर आंख यही प्रश्न करती दिखाई देती है कि तुम यह क्या कर बैठीं। गैरी तो कह ही रहा था कि तुम अभी तक जीवन की विषमताओं को समझ नहीं पा रही हो। जब सच्चाई सामने आएगी तभी तुम्हें मालूम होगा कि क्या कहाँ खो गया। '' सच तो यह है मैनी, कि हर समय कुछ ऐसा अहसास होता रहता है कि कुछ न कुछ, कहीं न कहीं खो गया है। एक विचित्र सी कमी महसूस होती रहती है। मैं भी चाहती हूँ कि हमारे घर में भी एक छोटे बच्चे की किलकारियों की आवाज ग़ूंजे। मगर क्या करें। जया, क्या तुम भी मुझ से ऐसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाओगी कि मैं होने वाले बच्चे से नहीं मिल सकती? '' '' मैनी, भला तुम्हारे और मेरे बीच किसी दस्तावेज की क्या आवश्यकता है? हाँ, डेविड तो गोरा ब्रिटिश है। वह तो हर काम कानूनी ढंग से करने में विश्वास रखता है। अगर उसकी तसल्ली की खातिर कुछ एक जगह दस्तखत करने भी पड ज़ाएं तो क्या फर्क पडता है? और इसी बहाने मेरी सहेली को कुछ पैसों की सहायता भी मिल जायेगी।आखिर तुम साल-डेढ साल की छुट्टी लोगी, तुम्हारा डिलिवरी के दौरान खाने-पीने और डॉक्टर का खर्चा होगा। यह डिलिवरी किसी सरकारी हस्पताल में तो होगी नहीं। इसके लिये तो तुम्हें प्राइवेट नर्सिंग होम में भरती होना पडेग़ा। अब अगर डेविड यह सब खर्चा करना चाहता है तो करने दो न। प्राइवेट नर्सिंग होम! आज तो लगता है पागलखाने में भरती होना पडेग़ा। कितनी जल्दी सब बदल जाता है। एक अनुभूति मात्र के लिये मैनी ने क्या-क्या खो दिया। सरोगेट माँ बनने के चक्कर में, न वह मां रह पाई और न ही पत्नी। बस सरोगेट ही रह गई। गैरी के बार-बार मना करने के बावजूद भी तो वह नहीं मानी थी। कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र पहुंच ही गई। डेविड के वीर्य और मैनी के गर्भाशय व ओवरी की कई बार जांच हुई। ओव्यूलेशन के सही समय की प्रतीक्षा थी। गैरी असहाय दर्शक बन कर देख रहा था, उसे शिकायत भी थी और आक्रोश भी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मैनी को अपने आपको इस समस्या में उलझाने की क्या आवश्यकता थी? और वह पल आया ही चाहता था जिसकी मैनी को बेसब्री से प्रतीक्षा थी। '' मैनी, तुम एक बार फिर सोच लो। अभी भी कुछ नहीं बिगडा है। कहीं ऐसा न हो कि डेविड और जया को खुशी देते-देते तुम्हारे अपने जीवन में खुशियां हमेशा के लिये गायब हो जाएं।'' '' अब सोचने जैसी स्थिति कहां रह गई है, गैरी? अब तो बस मुझे वो काम कर दिखाना है, जिससे तुम्हारे मित्र के जीवन में खुशियों की हल्की-हल्की गुलाबी सी वर्षा होने लगे। जया के चेहरे की उदासी दूर करनी है मुझे। बात यह नहीं है मैनी, मैं जानता हूँ कि तुम मन ही मन डेविड को चाहती हो। मैं इसे तुम्हारा कुसूर नहीं मानता, पूरा देश ही उसका दीवाना है। पर इसका यह अर्थ तो नहीं कि तुम र्निलज्ज हो जाओ। तुम मुझ पर इल्जाम लगा रहे हो। मैंने सेक्स के मामले में कभी तुम्हें धोखा नहीं दिया है। तुमने जीवन में सदा अपनी मनमानी की है, और मैंमैं सदा ही तुम्हारी बेहूदगियां बरदाश्त करता आया हूँ। इसका कारण यह नहीं कि मैं कोई कमजोर किस्म का आदमी हूँ। इसका कारण केवल इतना ही है कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। मगर याद रखो कि हर चीज क़ी एक सीमा होती है। ठीक उसी तरह मेरे सहने और तुम्हारे बेतुके व्यवहार की भी कोई सीमा होनी चाहिये। तुम अभी भी न कर सकती हो। मुझे अच्छी तरह मालूम है कि एक बार तुम गर्भवती हो गई तो पीछे नहीं हटोगी। इसलिये बार-बार समझा रहा हूँ, इस आत्महत्या जैसी हरकत से बाज आओ। गैरी तुम सपने नहीं देखते। जागते हुए सपने देखने का आनंद ही कुछ और होता है। जया और डेविड जिस बच्चे को जीवन भर प्यार देंगे, वो बच्चा मेरी कोख से जन्म लेगा। सोच कर ही मन पगला-पगला जाता है। इसी पागलपन से बचने को कह रहा हूँ मैनी। किन्तु मैनी कहाँ मानने वाली है। वह तो एक स्वछंद हवा में उडने वाला पक्षी है। आम मनुष्य के नियम उसे कहाँ बांध कर रख सकते हैं। आम गोरे पुरुषों की तरह गैरी गालियां नहीं देता। यदि वह दे पाता तो आज मैनी को गालियों से नवाज देता। वह आज तक मैनी के माता-पिता से नहीं मिला। उन्होंने मैनी के प्रेम-विवाह के बाद से उन्हें अपने जीवन से निकाल बाहर किया है। मन में आया कि उसके पिता से बात करे, किन्तु आज गैरी अपने ही विचारों से संघर्ष करता हुआ रेलगाडी चलाए जा रहा है। सिग्नल का रंग लाल है या हराउसे ठीक से सुझाई नहीं दे रहा। बेवन के शब्द उसके दिमाग में बार-बार बज रहे हैं - यदि तुम्हारी मानसिक स्थिति ठीक नहीं तो काम पर मत जाओ। जरा सी सावधानी हटी और दुर्घटना घटी।और वही हुआ भी। गनर्सबरी से साउथ एक्टन के बीच के लाल सिग्नल को नहीं देख पाया और स्पैड हो गया, यानि कि सिग्नल पास्ड एट डेन्जर। उसके सात साल की बेदाग ड्राइवरी में एक लाल निशान लग गया। अब साली इन्क्वायरी होगी। किसी को क्या मालूम कि गैरी का सारा जीवन ही लाल बत्ती पर आकर ठहर गया है। मैनी को गर्भ ठहर गया है। वह प्रसन्न हैडेविड खुश हैऔर जया की भावनाओं को तो व्यक्त करने के लिये किसी भी भाषा के शब्दों में सार्मथ्य नहीं है। उन भावनाओं को व्यक्त करने के लिये तो कोई नई शब्दावली बनानी होगी, नए मुहावरे गढने होंगे। मैनी के माध्यम से वह स्वयं गर्भवती हो गई है। और मैनी! अभी तो केवल यह तय हुआ है कि वह गर्भवती है और उसे अपने भीतर चलता-फिरता डेविड महसूस होने लगा है। '' यदि मैं डेविड के साथ संसर्ग कर भी लेती तो भी अन्तत: होना तो यही थामुझे उसके बच्चे की माँ ही तो बनना था और वह चुम्बन जो डेविड ने मेरे होंठों पर अंकित कर दिया था। क्या आज की स्थिति में मैं उसे ब्लैक-मेल कर सकती हूँ? क्या उसे मजबूर कर सकती हूँ कि वह मुझसे शारीरिक सम्बंध बनाए? आज तो उसकी सारी आशाएं मुझ पर आ टिकी हैं परन्तु डॉक्टर ने तो उसके सामने ही कहा है कि मैं अगले तीन महीनों तक सेक्स से दूर ही रहूँअन्यथा गर्भपात हो सकता है।मैं तो गैरी की बांहों में भी डेविड की कल्पना कर लेती हूँ। डेविड का प्रिय कोलोन 'कूल वाटर ही गैरी के लिये भी खरीदने लगी हूँ। दोनों के शरीर से एक सी गन्ध आने लगी है। किन्तु फुटबॉल के मैदान में खेल समाप्ति के पश्चात उसके पसीने की गंध तो मुझे दीवाना बना देती है। क्या डेविड मुझे एक गहरा चुम्बन भी नहीं दे सकता? '' आज खाना नहीं बनाया क्या? गैरी की आवाज उसे विचारों की दुनिया से खींच कर ठोस सच्चाई के धरातल पर ला पटकती है। वह अपने विचारों में ऐसी खोई हुई थी कि भोजन तैयार करने का तो ख्याल ही नहीं आया। '' गैरी डार्लिंग, मेरी तबियत आज थोडी ढ़ीली लग रही है। पिजा हट से पिजा मंगवा लो न। बच्चों को भी चेन्ज हो जाएगा। हमने कल रात भी पिजा ही खाया था, मैनी! तुम तो जानती हो कि मुझे बाहर का खाना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता। तुम मेरे मोबाईल पर फोन करके बता देती कि तबियत ठीक नहीं तो मैं कम से कम आते हुए रास्ते में से कुछ लेता आता। वैसे मैनी, यह रोज-रोज का बाहर का खाना हमारे बजट का तो सत्यानाश करेगा ही हमारे परिवार में गलत परम्पराओं को जन्म देगा। मुझे तो अपनी माँ का तरीका प्लीज ग़ैरी, अब दोबारा शुरु मत करना। पहले ही मेरी तबियत ठीक नहीं है, तुम तो जानते हो, इन दिनों मुझे कितनी उल्टियां होती हैं। सारा-सारा दिन मैं परेशान रहती हूँ मैं। क्यों रहती हो परेशान? किसके लिये? मैंने मना किया था न कि पंगा मत लो। अभी तो कुछ हुआ भी नहीं मैनी, तुम्हारा हठ हमारे सारे जीवन को तहस-नहस कर देगा। हम कितना बडा काम कर रहे हैं गैरी, तुम इस काम की महानता समझ ही नहीं रहे। देखो, मैनी, मैं सीधा-सादा आदमी हूँ। मेरी महत्वाकांक्षाएं, इच्छाएं बहुत सीमित हैं, मुझे महान या भगवान बनने का कोई शौक नहीं है। मैं केवल एक बात जानता हूँ कि तुमने मेरा कहना नहीं माना बस्स! अब तो यह कलह हर रोज घर में होनी है। किन्तु मैनी को अभी भी कहीं अपराध-बोध नहीं होता है। वह समझ नहीं पा रही कि आखिर उसका पति इतनी छोटी सी बात पर इतना परेशान क्यों हो रहा है। फिर हर दोपहर जब जया पहुंच जाती है, उसका हाल जानने, तो एक बार फिर वह अपने निर्णय पर अडिग सी खडी हो जाती है। आजकल जया उसका बहुत खयाल रखने लगी है। मैनी क्या खाएगी, क्या पहनेगी, कब सोएगी, कब जागेगी सभी कुछ तो वह तय करती है। जया मैनी के लिये मदरकेयर से ढीले गाउन ले आई है, मैनी के कमरे में सुन्दर से बालक का चित्र टांग दिया है। डेविड भी कभी-कभी फोन कर मैनी का हाल पूछने लगा है। हैरान हो रहे हैं कार्ल और रीटा! कार्ल और रीटा सहमे रहते हैं। उनके डैडी-मम्मी के बीच चलती तकरार पूरे घर को तनावग्रस्त बनाए रखती है। वे हैरान हैं, परेशान हैं।यह सब क्या हो रहा है, दिमाग छोटे हैं, समस्याएं बडी हैं समझ आएं भी तो कैसे? वे दोनों जानने को बेचैन हैं कि उनके माता-पिता को अचानक हुआ क्या है? मां अचानक बीमार क्यों रहने लगी है, और वो पिता जो मां के छींकने भर से उसके लिये दवाइयां लाने को बेचैन हो उठता था, अचानक उनकी बीमार मां को डांटने क्यों लगा है?मां तो अस्पताल के चक्कर लगा रही है, फिर भी पिता इतना निष्ठुर और कठोर व्यवहार कर रहा है। और मां को अस्पताल ले जाने के लिये विशेष तौर जया आंटी लेने आने लगी हैं। |
23 January, 2014
कोख का किराया
एक अनाम संबंध- नारायणी
थी। मैंने घर के सब दरवाजे बन्द कर दिये थे, परदे लगा दिये थे,कूलर चल रहा था। खाने पीने का तथा अनेकानेक घर के अन्य कामों को निपटाकर मसालेदार फिल्मी पत्रिका लेकर लेटी तो याद आया, टी वी में खूब नई चटपटी पिक्चर आनेवाली थी। यों तो हम लोग पुस्तक,पत्रिकाओं पर व्यर्थ पैसा खर्च नहीं करते पर कभी कभार मैं फिल्मी पत्रिका या महिलाओं की पत्रिका खरीद लेती हूं।
अलस भाव से पिक्चर की प्रतीक्षा करते साबुन, मंजन के विज्ञापन देखते पत्रिका के पृष्ठ पलट रही थी कि जोरों से कॉलबेल बज उठी। लेटे-लेटे ही पूछा कौन है ताकि कोई अवांछित व्यक्ति हो तो लौटा दूं पर कोई उत्तर न मिला, बल्कि दुबारा वही घंटी की आवाज आई। बडे अनमने से उठकर द्वार खोला, देखकर जानते हुये भी, कुढक़र, मुडक़र कहा- ''क्या है?''
''जी, चाय है, बडी क़डक जायकेदार, आप एक बार इस्तेमाल करके देखें।'' उसने विनीत स्वर में कहा,
''नहीं चाहिये, दुपहरी में भी चैन नहीं, जब देखो, पहुंच जायेगी, हमारी हमदर्द बनकर।''
मेरे बडबडाने का कोई असर नहीं, ''मॅडम आप एक बार लेकर तो देखिये... क़ुछ भी लीजिये, बडा पेकेट है, छोटे भी हैं, हर पेकेट के साथ-साथ गिफ्ट है... देखिये कितनी सुन्दर प्लेट है, पीछे के ब्लाक में सबने दो-दो, तीन-तीन लिये हैं।''
''मुझे नहीं चाहिये कहा तो पर मेरा भी मन ललचा उठा था, मन को समझाते हुये दृढता से कहा,
''जिस ब्राण्ड की चाय हम वर्षों से पी रहे हैं, तुम्हारे लिये क्यों छोड दें।''
''जी कुछ तो ले लीजिये''
''जब इतने घरों में बेच चुकी हो तो एक मेरे ही न लेने से क्या हो जायेगा कहते हुये मैंने जोर से द्वार बन्द किया।''
''नहीं चाहिये, दुपहरी में भी चैन नहीं, जब देखो, पहुंच जायेगी, हमारी हमदर्द बनकर।''
मेरे बडबडाने का कोई असर नहीं, ''मॅडम आप एक बार लेकर तो देखिये... क़ुछ भी लीजिये, बडा पेकेट है, छोटे भी हैं, हर पेकेट के साथ-साथ गिफ्ट है... देखिये कितनी सुन्दर प्लेट है, पीछे के ब्लाक में सबने दो-दो, तीन-तीन लिये हैं।''
''मुझे नहीं चाहिये कहा तो पर मेरा भी मन ललचा उठा था, मन को समझाते हुये दृढता से कहा,
''जिस ब्राण्ड की चाय हम वर्षों से पी रहे हैं, तुम्हारे लिये क्यों छोड दें।''
''जी कुछ तो ले लीजिये''
''जब इतने घरों में बेच चुकी हो तो एक मेरे ही न लेने से क्या हो जायेगा कहते हुये मैंने जोर से द्वार बन्द किया।''
ऐसे ही करना पडता है, कभी चिढक़र, कभी बिगडक़र, कभी हंसकर। तीन चार दिन बीते होंगे, मैं कहीं बाहर जाने की तैयारी में थी। मुझे देर हो चुकी थी, अतः जो भी हो उससे जल्दी ही क्षमा मांगना होगी। कौन होगा सोचते हुये द्वार खोला तो बडे से जूट के झोले में झांकते हुये साबुन पाउडर के डब्बों के पास थकी- थकी बैठी थी वही सेल्स गर्ल।
अब इनसे बहस करनी पडेग़ी, बारबार कहूंगी कि मुझे नहीं चाहिये और ये है कि टलने का नाम नहीं लेंगी। मेरे दो रूपये बचाने का पुण्यकार्य जो करना है इन्हें। मैंने जोर देकर कहा - ''आप जाइये, मुझे साबुन पाउडर नहीं चाहिये।'' वह विनयपूर्ण जिरह करती रही कि उसका साबुन सबसे सस्ता भी पडेग़ा, कपडे भी खूब साफ हो जायेंगे।
मैंने खीझ कर कहा, इतनी गर्मी में पैदल घर-घर घूम रही हो, तुम कोई काम और क्यों नहीं कर लेती?
''जी मुझे घर-घर जाना है इसलिये कोई सवारी भी तो ले नहीं सकती,देखिये मेरी लिस्ट देखिये, यहां कितने घरों में गई हूं, सब गृहिणियों के नाम लिखें हैं।''
''जी मुझे घर-घर जाना है इसलिये कोई सवारी भी तो ले नहीं सकती,देखिये मेरी लिस्ट देखिये, यहां कितने घरों में गई हूं, सब गृहिणियों के नाम लिखें हैं।''
''और देखिये नौकरी के लिये प्रयत्न भी कर रही हूं, कई जगह आवेदन किया है।''
कई सेल्स गर्ल्स आया करती थी जिन्हे टालने के लिये मैं तरह-तरह के नुस्खे आजमाया करती, कभी किसी से कह दिया, अभी लिया हैं, किन्तु तब उनका आग्रह होता, छूट और उपहार लेने के लिये लेने का। सामने न पडी तो कहला दिया कि मैं घर में नहीं हूं। इससे पहचान हो गयी थी, कई बार आ चुकी है सलौनी छरहरी सी लडक़ी बाईस तेईस ही आयु रही होगी। प्रायः ढीला ढाला - प्रिन्ट का खादी का सलवार सूट पहने रहती, उसी प्रिन्ट की चुन्नी ओढती जिसमें पीछे गांठ डाल लेती। कन्धों से नीचे तक के बाल क्लिप में बंधे रहते। कुछ लेने का आग्रह इतना तीव्र रहता कि अस्वीकार कठिन हो जाता। पर करना भी पडता है। हम भी तो क्या करें किसी की खुशी के लिये व्यर्थ में साबुन, क्रीम आदि कहां तक लें, हमारा भी तो सीमित बजट हैं, मैं अपने को सांत्त्वना देती हूं।
कई सेल्स गर्ल्स आया करती थी जिन्हे टालने के लिये मैं तरह-तरह के नुस्खे आजमाया करती, कभी किसी से कह दिया, अभी लिया हैं, किन्तु तब उनका आग्रह होता, छूट और उपहार लेने के लिये लेने का। सामने न पडी तो कहला दिया कि मैं घर में नहीं हूं। इससे पहचान हो गयी थी, कई बार आ चुकी है सलौनी छरहरी सी लडक़ी बाईस तेईस ही आयु रही होगी। प्रायः ढीला ढाला - प्रिन्ट का खादी का सलवार सूट पहने रहती, उसी प्रिन्ट की चुन्नी ओढती जिसमें पीछे गांठ डाल लेती। कन्धों से नीचे तक के बाल क्लिप में बंधे रहते। कुछ लेने का आग्रह इतना तीव्र रहता कि अस्वीकार कठिन हो जाता। पर करना भी पडता है। हम भी तो क्या करें किसी की खुशी के लिये व्यर्थ में साबुन, क्रीम आदि कहां तक लें, हमारा भी तो सीमित बजट हैं, मैं अपने को सांत्त्वना देती हूं।
और ये जिन्हें हम सेल्स गर्ल्स कहते हैं - अठारह से अडतालिस वर्ष तक की महिलाऐं, कन्धों पर बेग लटकाये कभी किसी कम्पनी का कभी किसी कम्पनी का माल ले कर घर में बेखटक बेचने चली आती है,साबुन, चाय, क्रीम, मंजन, अगरबत्ती, प्रसाधन की विविध वस्तुयें और न जाने क्या क्या ले कर जिन्हें कभी बिगड क़र, कभी उदासीन हो कर,कभी हंस कर मना करना पडता है, कभी कभी उनके गिफ्ट का प्रलोभन इतना तीव्र होता है कि सारी फटकार, सारा निश्चय धरा रह जाता है।
प्रथमबार उस नवयौवना से झुर्रियां मिटाने की क्रीम लेने का अनुरोध सुन आघात लगा था वैसे ही जैसे दीदी, भाभी सुनने के आदी कान, पति के नौजवान सहकर्मी से अपने लिये आंटी सुनना। पहला झटका आघात लगता है फिर तो हम उसके आदी हो जाते हैं।
मेरी छोटी बेटी यूनिवर्सिटी गई हुयी थी, बेटा अपनी नई नई पोस्टिंग पर दूसरे शहर में, बडी ससुराल में, फिर भी-
उस पर रोष हो आया, फटकार दिया था। ''आंटी, आप ले कर तो देखिये.. प्रतिष्ठित कंपनी की है।'' उसके विनय पर या क्रीम पर मन ललचा गया, ''तुम दीदी कह लो मुझे... यह आंटी वांटी पसंद नहीं, ...और देखो ऐसे कहो कि इससे त्वचा में निखार आयेगा ..ये सही है।''
उस पर रोष हो आया, फटकार दिया था। ''आंटी, आप ले कर तो देखिये.. प्रतिष्ठित कंपनी की है।'' उसके विनय पर या क्रीम पर मन ललचा गया, ''तुम दीदी कह लो मुझे... यह आंटी वांटी पसंद नहीं, ...और देखो ऐसे कहो कि इससे त्वचा में निखार आयेगा ..ये सही है।''
वह हर्षित हो गयी थी, दीदी बडी शीशी ले लीजिये, उनके साथ प्लास्टिक का जार मुफ्त मिलेगा और दीदी कुछ नहीं।
पैसे लेकर उसने कागज आगे कर दिया, नाम पता सब लिखना था तब से वह कभी कभी आया करती। एक बार कागज देखते पढते चकित हो कर कहा था, ''अरे क्या लीला मास्टरनी के घर भी गयी थी, तीन घर आगे तिमंजिले पर....क्या क्या लिया उन्होंने?''
''नेलपालिश और लिपिस्टिक़.... साबुन भी। यह सब वह क्या करेगी? सादी वेशभूषा, हल्के प्रिंट की सफेद जमीन की सूती या अधिकतर सिंथेटिक साडियां पहनने वाली तुम्हारी आंटी अधिक से अधिक एक साबुन या शैम्पू ले लेगी।''
'' मुझे भी जिज्ञासा हुई थी।'' उसने कहा था।
''जिज्ञासा।'' यह सेल्स गर्ल, यह दर-दर सामान बेचने वाली लडक़ी जिज्ञासा कह रही है जैसे कोई बडी विदुषी हो। मैंने व्यंग से कहा, ''अच्छा तुम्हें जिज्ञासा हुई, क्यों?''
''यही कि आंटी क्या करेगी इन सब श्रृंगार प्रसाधनों का ।''
फिर एक दिन साहस कर के पूछ लिया कि ''आंटी आप सब किसके लिये लेती हैं? घर में कोई और मेरी दीदी या भाभी?''
'' मुझे भी जिज्ञासा हुई थी।'' उसने कहा था।
''जिज्ञासा।'' यह सेल्स गर्ल, यह दर-दर सामान बेचने वाली लडक़ी जिज्ञासा कह रही है जैसे कोई बडी विदुषी हो। मैंने व्यंग से कहा, ''अच्छा तुम्हें जिज्ञासा हुई, क्यों?''
''यही कि आंटी क्या करेगी इन सब श्रृंगार प्रसाधनों का ।''
फिर एक दिन साहस कर के पूछ लिया कि ''आंटी आप सब किसके लिये लेती हैं? घर में कोई और मेरी दीदी या भाभी?''
वह हंसी थी, मैं संकुचित हो उठी थी, फिर कहा -
''आप तो इन को प्रयोग में नहीं लाती, किसी से पूछा हैं?'' मैं आम बोली में यूज या इस्तमाल की अभ्यस्त थी, एक मामूली साबुन, मंजन बेचने वाली, घर-घर घूमनेवाली ऐसे शब्दों का प्रयोग करें, मुझे कुछ विचित्र सा लगा।
आंटी ने कहा था, ''वह अपने लिये नहीं लेती, उनकी भांजी, भतीजियां हैं उन्हें उपहार दे देती हैं।'' पर जब भी मैं जाती हूं, वह सदैव कुछ न कुछ ले लेती है, कभी खाली हाथ नहीं लौटाती।
मुझे हीनता सी लगी, कहा - ''अच्छा है, तुम्हारा बडा ख्याल रखती है तभी न तुम काफी देर तक वहां बैठी रहती हो, वैसे तुम्हे घर-घर जाते डर नहीं लगता? ''
''सबके घर अंदर नहीं जाती, बाहर से ही बुला लेती हूं।''
''आंटी बैठने को कहती है, उनके पास बहुत सारी पुस्तकें हैं, दो-एक अच्छी पत्रिकाएं भी रहती हैं।''
''आंटी बैठने को कहती है, उनके पास बहुत सारी पुस्तकें हैं, दो-एक अच्छी पत्रिकाएं भी रहती हैं।''
मेरी हाथ में सस्ती मनोरंजन की पत्रिका थी, मुझे उसका कथन चुभन सा लगा।
मुझे चिढाना हुआ सा लगा तभी वह बोली, ''आंटी मुझे पढने को भी देती हैं।''
''अच्छा ।'' मुझे इर्ष्या ने आ घेरा, पूछा - ''घर ले जाने को भी देती हैं? ''
''जी हां''
''इतना विश्वास है? ''
'' जी, आंटी बहुत अच्छी हैं।''
मुझे चिढाना हुआ सा लगा तभी वह बोली, ''आंटी मुझे पढने को भी देती हैं।''
''अच्छा ।'' मुझे इर्ष्या ने आ घेरा, पूछा - ''घर ले जाने को भी देती हैं? ''
''जी हां''
''इतना विश्वास है? ''
'' जी, आंटी बहुत अच्छी हैं।''
जिसके घर न कोई उत्सव, न कोई आनेवाला न जानेवाला, जिसे मनहूस समझते हैं हम, उसकी स्तुति कर रही हैं। कुढक़र कहा-''उनको करना ही क्या है, अपने आगे पीछे कोई दिखता नहीं, आगे नाथ न पीछे पगहा, बस जो मिल गया उसी को एक प्याली चाय की लालच दे बैठा लेंगी, आखिर समय बिताने कोई साथ तो चाहिये न। रिश्ते के लोग दूरी रखते होंगे, कहीं बुढापे में उन पर भार न बन जायें।''
''दीदी, कई लोग तो एक घूंट पानी के लिये भी कह देंगे, आगे जाओ नल लगा है.... घर में कोई है नहीं.... हमसे उठना नहीं होगा..... उन्हें डर रहता है कि वह पानी लेने जायें, हम कुछ उठा न लें ।''
वह तो जैसे मुझे दर्पण दिखा रही थी। अपना झोला समेट वह उठ खडी हुई। झोले में पालीथिन के बैग में दो पुस्तकें थी, सस्ते उपन्यास होंगे और क्या पढेग़ी। देखा तो एक हजारी प्रसाद द्विवेदी का उपन्यास पुर्ननवा और दूसरी रामधारी सिंह दिनकर की कृति थी संस्कृति के चार अध्याय।
जिसको मैंने कितनी ही बार फटकार दिया था, समय असमय कालबेल बजाने पर, उसके काम की हंसी उडाते हुये कहा था - ''सब्जी भाजी बेचने आती है तो शान से खडी रहती हैं, लेना हैं तो लो नहीं तो चलें।पर ये सेल्सगर्ल तो अडक़र ही बैठ जाती है, चाहे जैसे हो गांठ के पैसे लेकर ही छोडेग़ी'', वह सुनकर हंस दी थी, ''आप का विश्लेषण ठीक ही है दीदी, पर हमारी नौकरी यही हैं ना।''
आज सोचने लगी कैसी लगन हैं, कैसे रूचि है इस लडक़ी की। पुर्ननवा - द्विवेदी जी का संस्कृतनिष्ठ इतिहास और पुराण समेटे गंभीर प्रकृति का उपन्यास जिसके दस बीस पृष्ठ भी हम नहीं पढ पाये और संस्कृति के चार अध्याय ? वह जैसे चार कहानियां पढ रही हो। संस्कृति के नाम पर हम कल्चरल प्रोग्राम नाचगान उछलकूद को ही जानते हैं।
'इन्हें पढ लिया - कैसी लगी? ''
''जी, बहुत अच्छी, आप पढ क़र देखिये न... आप कुछ लीजिये दीदी,जल्दी घर जाना चाहती हूं।''
''घर या कहीं और.. '' मैंने थाह लेनी चाही। आज उसने चटक और नया सलवार कुर्ता पहना हुआ था।
''बहन के घर जाना है, भांजे का जन्मदिन हैं।''
''तो एक दिन अपना भ्रमण छोड देती।''
''जी, बहुत अच्छी, आप पढ क़र देखिये न... आप कुछ लीजिये दीदी,जल्दी घर जाना चाहती हूं।''
''घर या कहीं और.. '' मैंने थाह लेनी चाही। आज उसने चटक और नया सलवार कुर्ता पहना हुआ था।
''बहन के घर जाना है, भांजे का जन्मदिन हैं।''
''तो एक दिन अपना भ्रमण छोड देती।''
वह विवशता भरी दृष्टि डाल कर चली गयी। कई महिने बीत गये वह सेल्स गर्ल नीरा नहीं आयी। दूसरी कई आती रही पर उनसे उसके विषय में कुछ ज्ञान न हो सका, आती तो प्रायः लौटाना पडता कभी चिढक़र कभी बिगडक़र कभी हंसकर।
इस बीच लीला मास्टरनी बीमार पडी अपने तिमंजिले के घर से उतरती,रिक्शा ले डाक्टर के पास जाती, पावभर दूध हमारा दूधवाला दे आता था। उससे ही मालूम हुआ कि मास्टरनी कभी कभी डबलरोटी मंगवा लेती है उससे। पडोस के फर्ज में देखने गई, दूसरे नीरा उनकी प्रशंसा करती थी, मेरा कौन सा नीरा से संबंध था पर कुछ था जो दोनों को बांध गया। मेरी देखा देखी पडोस की दूसरी महिलाएं निकली। जिगर के कैंसर की रोगिणी पर ईश्वर ने दया की थी, वह अधिक समय दीन हीन अवस्था में पडी नहीं रही थी।
मकान मालिक सेल्स गर्ल नीरा की खोज में थे। उसे देख क्षणभर में कई विचार मन में उठें जिनमें प्रमुख था, क्या वह लीला के घर से कुछ चुरा ले गई थी जो उसके मृत्यु के बाद आई है।
उसे साथ ले तीसरे घर के तिमंजिले पर पहुंची हूं तमाशा देखने, किन्तु स्तब्ध रह गई, काठ सा मार गया - ''लीला मास्टरनी अपनी सब कुछ तुम्हारे नाम कर गई है, है ही क्या, किताबों भरी अलमारी, एक पतली सी सोने की चेन, नन्हें नन्हें कानों के टाप्स, घडी, यह प्रिय पेड, मेज,क़ुर्सी, बैंक में कुछ रूपया। चेक पर हस्ताक्षर कर दिया था। क्रिया कर्म पर जो खर्च हो बीमारी में लगे , उसमें से ले लिया जाय, जो बचे तुम्हारा है यह पत्र ही वसीयत है, हम तुम्हें खोज रहे थे, अच्छा है तुम आ गई।''
''इसमें उनके कपडे है जो न ले जाना चाहो, गरीबों को बांट दो कहते हुये अलमारी का पट खोल दिया मकान मालकिन ने ।''
अब तक काठ बनी नीरा अरे आंटी कहकर बिलख कर रो उठी है। उससे ली हुयी सभी वस्तुएं वहां करीने से रखी हुई थी। केवल उसका मन रखने के लिये आंटी ने कहा था कि उनके भतीजियां हैं।
''है तो बेटे पर क्या वह इन मामूली वस्तुओं का प्रयोग करेगे? ''
स्टेटस् में रहने वाले भाई जिनके लिये लीला ने विवाह नहीं किया था,सूचना पा कर कह दिया सुविधा होगी तो आ जायेंगे, जनरल वार्ड में भेज दें ।
मैने बार बार रोती नीरा को अंक में समेट लिया, आज उससे जाने को न कह सकूंगी न चिढक़ार न बिगडक़र न हंसकर।
पत्थर की लकीर-उर्मिला शिरीष
'' किसकी चिट्ठी है? ''
'' शैली की।''
'' कहां से आई है?''
'' उसकी बुआ का पत्र है, रजिस्टर्ड डाक से आया है।''
'' खोल कर देखो क्या लिखा है, भारी लग रहा है, जरूर कुछ भेजा होगा, फोटोग्राफ्स भी हो सकते हैं''
'' शैली की।''
'' कहां से आई है?''
'' उसकी बुआ का पत्र है, रजिस्टर्ड डाक से आया है।''
'' खोल कर देखो क्या लिखा है, भारी लग रहा है, जरूर कुछ भेजा होगा, फोटोग्राफ्स भी हो सकते हैं''
'' प्रिय बुआ की चिट्ठी जो है!'' व्यंग्यात्मक लहजे में बोला उन्होंने। जैसे बुआ की बात तो बात चिट्ठी तक एक व्यंग्य भरा तनाव घर में पैदा कर देता। उनके चेहरे पर पडे बल गिलहरी की तरह फुदकने लगे! आंखें तरेर कर पति की तरफ देखा और आवाज में घुली कडवाहट कुनैन - सी लग रही थी। बुआ शब्द, बुआ सम्बोधन महिनों क्या वर्षों तक नहीं लिया गया था, इस घर में। बुआ शब्द उच्चारते ही सब चुप्पी साध लेते थे या उठ कर चल देते थे। इसी घर में जन्मी अपनी कामनाओं और सपनों के साथ बडी हुई, बुआ,जिनका बचपन और सुन्दर युवावस्था इन्हीं अमरूदों के पेडों के नीचे खेलते - खाते, घूमते - झूलते और अंगडाई लेते बीता था। यहां की मिट्टी में, फूलों, पेडों, बर्तनों और दीवारों में, बुआ के रंग - पसन्द - स्पर्श घुले थे। बडी बुआ एकाएक इस घर से ही नहीं - सबकी जुबान से ऐसे छिटका दी गईं थीं जैसे दूध में से मरी, पिचकी मक्खी को निकाल कर फेंक दिया जाता है। दुनिया की तमाम बुआएं इसी रिश्ते के नाते, निष्कासित कर दी गई थीं। लेकिन शैला ही एकमात्र ऐसी सदस्या थी जो बेशब्द चुप रह कर बुआ की उपस्थिति को जिन्दा बनाये रखती थी । कई बार तो उन्हें लगता शैला नहीं, उनकी अपनी बेटी नहीं, बुआ देख रही हैं, बुआ बोल रही है। एक दिन वे झुंझला कर, निराश होकर बोलीं, '' बिलकुल अपनी बुआ पर गई है, जिससे हमें नफरत थी, जिसका चेहरा मैं नहीं देखना चाहती थी, वही मेरी बेटी में आकर बैठ गयी है।''
'' बिलकुल यही शब्द बोलती थी, वही जिद, तुम बच्ची हो!''
'' क्या गलत बोलती थी। मुझे पता है, मम्मी मेरे साथ भी तुम और बन्टी यही सब करोगे जो बुआ के साथ किया। ''
'' ऐसा क्या किया बुआ के साथ, बोलो! सबका अपना - अपना भाग्य होता है। उन्होंने कभी बात मानी।''
'' मैं इस घर की बेटी हूं। वे दादाजी की बेटी हैं। जब एक बेटी को नहीं समझा गया तो दूसरी को क्या''
'' तुम्हारे अन्दर वह ऐसा जहर भर गयी है कि''
'' दूसरों को रिसपेक्ट देना सीखो मम्मी।'' शैला भी गुस्से में जोर से बोली।
'' हां, तुम तो उन्हीं का पक्ष लोगी, अपने खानदान का, अब तुम सब एक खानदान की जो हो गयी हो और मैं वर्षों बाद भी पराये घर की हूं।''
'' क्या गलत बोलती थी। मुझे पता है, मम्मी मेरे साथ भी तुम और बन्टी यही सब करोगे जो बुआ के साथ किया। ''
'' ऐसा क्या किया बुआ के साथ, बोलो! सबका अपना - अपना भाग्य होता है। उन्होंने कभी बात मानी।''
'' मैं इस घर की बेटी हूं। वे दादाजी की बेटी हैं। जब एक बेटी को नहीं समझा गया तो दूसरी को क्या''
'' तुम्हारे अन्दर वह ऐसा जहर भर गयी है कि''
'' दूसरों को रिसपेक्ट देना सीखो मम्मी।'' शैला भी गुस्से में जोर से बोली।
'' हां, तुम तो उन्हीं का पक्ष लोगी, अपने खानदान का, अब तुम सब एक खानदान की जो हो गयी हो और मैं वर्षों बाद भी पराये घर की हूं।''
ऐसी ही बातों पर मां - बेटी बुआ पुराण को लेकर एक दूसरे पर ताने कसतीं। आक्षेप - बहस और समापन होता इस एक वाक्य से कि'' तुम्हारे पापा तो उसके गुलाम रहे हैं। तुम भी गुलामी करो।''
'' मम्मी!''
'' मम्मी!''
जब बहस की तपिश कम हो जाती तो वे जातीं और रूठी बेटी को मनाने लगतीं। दीवार की तरफ चेहरा किये बेटी किसी उपन्यास में डूबी होती या गुमसुम रहती। जैसे शरीर में स्पन्दन ही न हो या कभी देखती डायरी में कुछ लिख रही है। वे कविताएं होती थीं जो रेखांकनों के साथ मौजूद होतीं। उनका मूल भाव सम्बन्ध होते। सम्बन्धों की वेदना या कभी देखती कमरे में कोई पोस्टर लगा है या चित्र जो हू - ब - हू बुआ की स्टाइल में लगे होते।
'' अभी से कवितायें लिखने लगी हो और यह क्या, डायरी! पढाई - लिखाई छोडक़र यही काम करती हो। यह सब काम आने वाला नहीं।कुछ पढ लोगी तो सुखी रहोगी वरना रोना अपनी बुआ की तरह।''
'' अभी से कवितायें लिखने लगी हो और यह क्या, डायरी! पढाई - लिखाई छोडक़र यही काम करती हो। यह सब काम आने वाला नहीं।कुछ पढ लोगी तो सुखी रहोगी वरना रोना अपनी बुआ की तरह।''
'' बद्दुआएं क्यों देती हो मम्मी? बुआ का क्या दोष था?''
अपशब्द निकलने की ग्लानि से वे चुप हो जातीं। बुआ के नाम पर ताना मारकर वे दिल तो अपनी बेटी का ही दुखा रही हैं। वे चुप्पी साध कर बाहर निकल आतीं लेकिन उनका ध्यान वहीं लगा होता। उसके सोते ही फिर जा पहुंचती। चुपके से डायरी उठाती। पृष्ठ उलटती।बादल, आसमां, चांद, पेड, चिडिया। इसी कमरे में इसी जमीन पर गद्दा बिछा कर, औंधी पेट के बल लेटकर - पांव आसमान की तरफ पंखे की आकृति में मोड क़र और छातियों के नीचे तकिया लगा कर बुआ पढती - लिखती या छोटे से शीशे में अपना चेहरा देखती रहती थी। उन्हें याद है शादी के बाद वे किसी के यहां आमन्त्रित की गयीं थीं तब बुआ ने उनकी मुखमुद्राओं पर कविताएं लिख कर दी थीं।उनके जन्मदिन पर, मैरिज एनीवर्सरी पर, कार्ड पर उनकी कविताएं लिखी होतीं। उनके जाने के बाद उन्होंने सारे पोस्टर्स, गमले, पत्थर,खिलौने और किताबें उठा कर बाहर पटकवा दी थीं जैसे इतने वर्षों का गुस्सा तथा घृणा बाहर फेंक कर मुक्त हो जायेंगी। उनका घर में एकछत्र राज्य था। अब वे थीं और उनका घर। बच्चे थे और उनका निर्द्वन्द्व हुक्म चलाने का अधिकार। मगर उसी कमरे में जाकर वे चौंक गयीं।
'' कितना बदसूरत हो गया यह कमरा! कितना अंधेरा रहता है!''
'' पर बुआ के रहते यहां न अंधेरा होता था न बदसूरती दिखती थी।'' शैला ने उनकी आंखों में झांकते हुए कहा जैसे वह परोक्षरूप में मम्मी को ही दोषी ठहराना चाहती है। उनके भावों को पकड लिया है उसने। और तीन दिन बाद ही देखा कि वह कमरा बुआमय हो गया था। तरह - तरह के पोस्टर, तस्वीरें, ग्रीटिंग कार्डस लगा दिये गये थे। गमलों को सजा दिया गया था। टेबल पर किताबें, शीशा, खिलौने और सजावटी पत्थर रखे थे।
'' पर बुआ के रहते यहां न अंधेरा होता था न बदसूरती दिखती थी।'' शैला ने उनकी आंखों में झांकते हुए कहा जैसे वह परोक्षरूप में मम्मी को ही दोषी ठहराना चाहती है। उनके भावों को पकड लिया है उसने। और तीन दिन बाद ही देखा कि वह कमरा बुआमय हो गया था। तरह - तरह के पोस्टर, तस्वीरें, ग्रीटिंग कार्डस लगा दिये गये थे। गमलों को सजा दिया गया था। टेबल पर किताबें, शीशा, खिलौने और सजावटी पत्थर रखे थे।
'' यह सब क्या ठीक लगता है। तुम स्टूडेन्ट हो। कॉम्पटीशन की तैयारी करनी है या नहीं। हटाओ ये सब। इतने गमले, मच्छर आएंगे नमी के कारण।''
शैला उस समय नहीं जानती थी कि मम्मी उसकी रुचि को नहीं बुआ की पसन्द को बल्कि उनकी छायाकृतियों को हटा देना चाहती थीं।वे जब कभी दोपहर में आतीं तो सुनतीं कानों में रस घोलते मधुर गाने रेडियो पर बज रहे हैं।
'' अब रेडियो भी सुनने लगी हो। उसमें तो पुराने गीत आते हैं - क्यों इतना मंहगा सी डी प्लेयर खरीदा जब इसी टुटपुंजिये पर गीत सुनने थे तो।''
'' वही तो अच्छे लगते हैं मम्मी! ''
'' बित्ते भर की लडक़ी और बातें बुजुर्गों जैसी करती है।''
'' क्यों मम्मी, क्यों? क्यों आप दोहरी सोच लेकर चलती हैं?''
बेटी उनसे सवाल कर रही थी - बेटी उनके सामने खडी थी, जिसमें उनका कुछ भी मेल नहीं खाता था। न रंग, न रूप, न कद काठी, न उनकी पसन्द। कैसे कहें कि इसी को उन्होंने नौ महीने तक पेट में रखा था। कौन सा रहस्य है। जो उनसे छिटक कर बुआ को प्रवेश करा गया है उसके भीतर।
'' अब रेडियो भी सुनने लगी हो। उसमें तो पुराने गीत आते हैं - क्यों इतना मंहगा सी डी प्लेयर खरीदा जब इसी टुटपुंजिये पर गीत सुनने थे तो।''
'' वही तो अच्छे लगते हैं मम्मी! ''
'' बित्ते भर की लडक़ी और बातें बुजुर्गों जैसी करती है।''
'' क्यों मम्मी, क्यों? क्यों आप दोहरी सोच लेकर चलती हैं?''
बेटी उनसे सवाल कर रही थी - बेटी उनके सामने खडी थी, जिसमें उनका कुछ भी मेल नहीं खाता था। न रंग, न रूप, न कद काठी, न उनकी पसन्द। कैसे कहें कि इसी को उन्होंने नौ महीने तक पेट में रखा था। कौन सा रहस्य है। जो उनसे छिटक कर बुआ को प्रवेश करा गया है उसके भीतर।
जितना ही वे बुआ से दूर स्वयं को तथा अपनी बेटी को ले जाना चाहतीं उतनी वह पल - पल बडी होती बेटी के रूप में जवान होती जाती। जैसे वटवृक्ष अपनी जडाें के साथ फैलता जा रहा हो। बस इतना फर्क था कि बुआ चुप रहती थी और बेटी बोल रही थी जैसे अतीत ने वर्तमान में पहुंचकर अपनी कमी को पूरा कर लिया हो। वे उदास होकर किताबों में खो जाती थीं - बेटी बहस करने लगती है।तर्क करने लगती है। जवाब मांगती है। वे अपना विरोध बेवजह जताती थीं।
मगर पिछले कुछ दिनों से वे देख रही थीं कि शैला भी बुआ की तरह खामोश हो गयी है। घण्टों एकान्त में बैठकर सोचती रहती है। पता नहीं वह क्या देखती है। इस खाली से दिखने वाले आकाश में और किन ख्यालों में डूबी रहती है। उसके पतले पतले पांवों की छाप उनकी छाती में पत्थर की तरह प्रहार करती है। हे भगवान यह लडक़ी मेरे हाथ में नहीं है। मेरी होकर भी मेरी नहीं है। उनका मन क्षोभ और वेदना से भर उठा।
सामने रखा पत्र, जो ब्राउन कलर लिफाफे में बन्द है, उन्हें चिढा रहा है। उस पर चिेपके टिकटों में किसी कवि की तसवीर छपी है।सुन्दर अक्षरों में जमा कर लिखा है : सिर्फ शैला के लिये।' क्या होगा इसमें? क्या कोई लम्बा खत है। लम्बे खत में क्या बातें होंगी।डायरी । पेपर्स ! उन्होंने लिफाफे को उठा कर इस तरह हिलाया जैसे जौहरी किसी रत्न के वजन और गुणवत्ता का अन्दाज लगाता है। खोल कर देखूं क्या? उनके मन में तेजी से ख्याल आया। वे खोल सकती हैं। शैला नाराज हो जायेगी। मुझे इतना भी हक नहीं है कि मैं उसकी चीजें खोल कर देख सकूं। उसकी मां हूं मैं । वे उठीं और लिफाफे का किनारा पकड क़र फाडने को हुईं लेकिन उंगलियां कांप उठीं। मुझे क्या। लेकिन थोडी देर बाद घूम फिर कर उसी लिफाफे के सामने आ खडी हुईं। लिफाफे के अन्दर बन्द रहस्य अदृश्य रूप में निकल कर उनकी आत्मा में जा घुसा था। वे बेचैन हो उठीं। इतने सालों में एक कार्ड तक नहीं डाला। भाईदूज, रक्षाबन्धन, बर्थडे। सब निकल जाते थे पर कुछ नहीं आया कभी। शुरु - शुरु में सबको बुरा लगता था। फिर जैसे सबने उनका नाम लेना बन्द कर दिया था और इन्तजार करना भी ... वो मरे या जिन्दा रहे ... हमें मतलब नहीं। घर में घोषणा कर दी गयी थी। हमने ठेका नहीं ले रखा। जो किया सो भुगते। कहा जाता था और सचमुच औपचारिक रूप से यही सब हो गया। उन्हें अपनी जीत पर सुकून मिला था, वरना पूरे समय भाई अपनी बहन की चिन्ता में लगे रहते थे।
शैला चार बजे आती है। आकर देखेगी तो चौंक जायेगी। खुश होगी ... इस लिफाफे को खोलकर तब बतायेगी और क्या पता वह बताती भी है या नहीं! वे घडी क़ी तरफ देखने लगीं। घडी क़ी सुइयां ठहरी हुई लग रही थीं। जब वे इस घर में शादी होकर आई थीं तब शैला की बुआ पढ रहीं थीं। दो चोटियां, मध्यम कद, हल्की लचीली कोमल - सी देह। हर पल उनके आस पास मंडराती हुई। भइया - भाभी की आदर्श सेविका। मान - अपमान से परे। उनके मुंह से एक शब्द निकला नहीं कि हाजिर हो जाती और उनको यह नागवार गुजरता था कि लडक़ी इस तरह उनके आस पास मंडराती रहे या हर बात में हर समय उसको शामिल किया जाये।
'' यह कैसी लडक़ी है, ननद होने का इसे गुमान तक नहीं।''
'' हमारे परिवार में ये बातें नहीं होनी चाहिये, मैं सिर्फ ननद नहीं हूं।''बुआ कहने वालों का मुंह बन्द कर देतीं। एम ए तक आते - आते उनकी शादी की बातें होने लगीं। भाई दौडे ज़ा रहे हैं - पिता अलग। कोई लडक़ा पसन्द नहीं आता। न घर - परिवार। उतना स्तर नहीं मिल पा रहा था। उसके मंगल ने सारे परिवार को अपने मंगली प्रभाव से जकड लिया था जबकि वे मंगल, शनि यहां तक कि ईश्वर में विश्वास नहीं रखती थीं। उन्हें यह खेल बडा बचकाना और पाखण्ड लगता था।
'' हमारे परिवार में ये बातें नहीं होनी चाहिये, मैं सिर्फ ननद नहीं हूं।''बुआ कहने वालों का मुंह बन्द कर देतीं। एम ए तक आते - आते उनकी शादी की बातें होने लगीं। भाई दौडे ज़ा रहे हैं - पिता अलग। कोई लडक़ा पसन्द नहीं आता। न घर - परिवार। उतना स्तर नहीं मिल पा रहा था। उसके मंगल ने सारे परिवार को अपने मंगली प्रभाव से जकड लिया था जबकि वे मंगल, शनि यहां तक कि ईश्वर में विश्वास नहीं रखती थीं। उन्हें यह खेल बडा बचकाना और पाखण्ड लगता था।
'' कब तक परेशान होते रहोगे। राजकुमार भी तो राजकुमारी चाहेगा न। र्स्माट लडक़े को र्स्माट लडक़ी नहीं चाहिये?''
'' उसने कब कहा कि राजकुमारी ढूंढो, मगर लडक़ा औसत तो हो। खाता - पीता परिवार तो हो।''
'' उसने कब कहा कि राजकुमारी ढूंढो, मगर लडक़ा औसत तो हो। खाता - पीता परिवार तो हो।''
अम्मा कहते - कहते रह गईं थीं। पता नहीं क्या हुआ कि उनका मन वृक्षों की शाखाओं की तरह आकाश में टंगा रहने लगा था ... इस बीच फूल भी खिले थे। होलियां भी जली थीं। दीवाली के दीपों ने अंधकार में भी अपनी सत्ता कायम रखी थी। मगर बुआ के चेहरे की लौ गयाब हो गयी थी। हल्की - सी गुलाबी आभा जो पंखुडियों पर ही दिखती है। वो अचानक अदृश्य हो गयी थी। शनै: शनै: उतरती संध्या में गाढे होते अंधेरे में टिमटिमाते नक्षत्रों - सी वे दूर - दूर होती गयीं थी। शैला तब छोटी थी, उनके साथ खेलती थी। सोती थी। यही वह समय रहा होगा जब उनके स्पर्शों, उनकी सांसों, उनकी निगाहों से बरसती गन्ध, रसधार उसके भीतर समाती गयी। उनका रक्त उसके भीतर दौडने लगा होगा। वे समझ नहीं पाती सिवा इसके कि पति को अपने सम्मोहन में करने, चक्कर लगवाने और सम्पत्ति की सुरक्षा करते - कराते कब उनकी बेटी उनसे दूर होकर बुआ के करीब जा पहुंची थी। उनकी शादी के बाद शैला एकदम अकेली हो गयी थी। उनका कमरा कब शैला का कमरा हो गया था। उनके दहेज का बचा सामान - जेवर अब शैला के दहेज में रख दिया गया था। वे उस पीढी क़ी बडी लडक़ी थीं, शैला इस पीढी क़ी। शैला को मालूम था कि ससुराल में बुआ की स्थिति ठीक नहीं है। उनके जैसा स्वभाव वाला इन्सान कोई नहीं था। न वैसा आचरण, न वैसे संस्कार। यह भाग्य ही था।
एक बार वे पता नहीं किस मजबूरी में हताश होकर स्वयं की रक्षा करने की गरज से आ गयी थीं। उनका सामना बरामदे में पडा था और इधर मम्मी का चेहरा और भी सख्त हो गया था। उनके होंठ इतनी जोर से चिपक जाते थे कि लगता था खुलैंगे भी या नहीं। इसी समय निर्णायक भूमिका निभानी थी। जरा - सी सहानुभूति दिखायी या समझाया तो वे अपने बच्चों सहित यहीं आकर रहने लगेंगी। इसलिये उपेक्षा जरूरी है। पराये होने का बोध करवाना जरूरी है। और वही किया था उन्होंने। न ज्यादा बात, न साथ में बैठना, न पूछना। एक अनकहा कसता शिकंजा। तनाव कि जाओ यहां जगह नहीं है। अपने हिस्से का, अपने प्रारब्ध का दु:ख अकेले झेलो।
'' भाभी, बच्चों के कुछ कपडे रखे हैं? लाने का समय ही नहीं मिला।''
'' नहीं, सब दे दिये।''
'' रखे तो हैं मम्मी।'' शैला बीच में ही बोल पडी थी। फिर शैला देखती मम्मी अपनी सहेलियों से घण्टों बातें कर रही हैं। किसी पार्टी में जा रही हैं। शाम को संगीत सीख रही हैं। खूब अच्छे से तैयार होकर नये - नये सूट पहन कर घूमने जा रही हैं और बुआ!
'' नहीं, सब दे दिये।''
'' रखे तो हैं मम्मी।'' शैला बीच में ही बोल पडी थी। फिर शैला देखती मम्मी अपनी सहेलियों से घण्टों बातें कर रही हैं। किसी पार्टी में जा रही हैं। शाम को संगीत सीख रही हैं। खूब अच्छे से तैयार होकर नये - नये सूट पहन कर घूमने जा रही हैं और बुआ!
वह देखती बुआ के लम्बे सांवले चेहरे और पपडाए होंठों पर सूखी धरती सी दरारें खिंच आयी हैं। बाल सफेद होने लगे हैं। बुआ के पतले हाथों को छूते हुए वह सहम जाती थी। उनके बालों का घनापन और कालापन सब जगह सराहा जाता था। वही बाल अब दो उंगलियों के बीच आत जाते थे।
दादाजी - पापाजी और बाकी लोग बैठकर विचार करते रहते -
'' या तो बात मानो या वहीं जाकर रहो। दबकर रहोगी तो कोई नहीं पूछेगा। गुलामी क्यों करती हो! यहां रह कर वहां की बात मत करो।जो है सो भाग्य मान कर चलो या सख्त कदम के लिये तैयार रहो। पुलिस, कोर्ट। एक घण्टे में ठीक हो जायेगा। जहां चार डण्डे पडेंग़े तो।''
'' झेलना किसे कहते हैं मम्मी, आप जानती हैं?''
''पढना लिखना तो है नहीं। सबकी बातों में टांग अडाती हो। आसान होता है सब कुछ।''
'' क्यों नहीं होता! क्यों नहीं हो सकता। यहां इतना पैसा है, बुआ को कुछ करवा दो। उनके नाम एक फ्लैट खरीद दो। पैसा आएगा तो जी सकेंगी। आपने सुना नहीं, उनको खाने - पहनने तक को नहीं मिलता। इस घर की हैं वो फिर इतना अन्तर क्यों! बोलो मम्मी, इतना अन्तर क्यों! मेरे पास हजारों कपडे हैं। गहने ठूंसकर रख दिये हैं आपने। घूमने पर खर्च हो जाता है पैसा। और उनको रिश्तेदार मानकर साडी दी जाती है एक तो वो भी प्राईज देख कर।''
'' चुप रहो।'' उनका हाथ उठ गया था शैला के ऊपर।
'' बुआ, आप वापस चली जाओ। इस घर में किसी को आपकी परवाह नहीं।''
दादाजी - पापाजी और बाकी लोग बैठकर विचार करते रहते -
'' या तो बात मानो या वहीं जाकर रहो। दबकर रहोगी तो कोई नहीं पूछेगा। गुलामी क्यों करती हो! यहां रह कर वहां की बात मत करो।जो है सो भाग्य मान कर चलो या सख्त कदम के लिये तैयार रहो। पुलिस, कोर्ट। एक घण्टे में ठीक हो जायेगा। जहां चार डण्डे पडेंग़े तो।''
'' झेलना किसे कहते हैं मम्मी, आप जानती हैं?''
''पढना लिखना तो है नहीं। सबकी बातों में टांग अडाती हो। आसान होता है सब कुछ।''
'' क्यों नहीं होता! क्यों नहीं हो सकता। यहां इतना पैसा है, बुआ को कुछ करवा दो। उनके नाम एक फ्लैट खरीद दो। पैसा आएगा तो जी सकेंगी। आपने सुना नहीं, उनको खाने - पहनने तक को नहीं मिलता। इस घर की हैं वो फिर इतना अन्तर क्यों! बोलो मम्मी, इतना अन्तर क्यों! मेरे पास हजारों कपडे हैं। गहने ठूंसकर रख दिये हैं आपने। घूमने पर खर्च हो जाता है पैसा। और उनको रिश्तेदार मानकर साडी दी जाती है एक तो वो भी प्राईज देख कर।''
'' चुप रहो।'' उनका हाथ उठ गया था शैला के ऊपर।
'' बुआ, आप वापस चली जाओ। इस घर में किसी को आपकी परवाह नहीं।''
उसने एक ही शब्द बोला था जबकि बुआ की आंखों में कितना कुछ झिलमिलाते, टूटते, गुम होते हुए देखा था। बुआ की अधसूखी काया को देखकर शैला रोने लगती।
सचमुच एक सप्ताह बाद बुआ चली गयी थी। एक अवसाद भरा सन्नाटा छोडक़र। भांय - भांय करता कमरा और हरवक्त मंडराती बुआ की परछांई। कैसे जिन्दा है बुआ! वे मार खाती हैं, गाली खाती हैं और ये सब कुछ नहीं करते। क्यों! उनके पास पैसा नहीं है और ये देते नहीं, क्योंकि बुआ अब इस घर की नहीं हैं, बुआ उस घर की भी नहीं हैं। वहां पिता के घर की हैं, यहां पति के घर की। पति और पिता के बीच झूलती बुआ। वह चुपचाप रोती रहती थी। रात में उसे भयानक सपने आते। हर समय बुआ का चेहरा सामने रहता। वह सोते - सोते उठ कर बैठ जाती - '' बुआ!''
फिर घर में लगातार कई घटनाएं घटती गयीं, जिनमें बुआ शामिल नहीं हुईं थीं। पिता की सम्पत्ति का हिस्सा मांगा था उन्होंने!
वे इस खबर को पढक़र आसमान से गिर पडी थीं। जिस सम्पत्ति से उन्हें अटूट मोह था। वह सम्पत्ति कोई कानूनन मांगे। कितनी चालाक निकलीं। कोई कहेगा कि ऐसी सीधी दिखने वाली लडक़ी ऐसा कदम उठा सकती है? जिन्दगी भर भइया को उल्लू बनाती। जान छिडक़ने का नाटक करती रही। अब देखो नोटिस भिजवा दिया।
'' आप लोगों ने इतना पैसा होते हुए भी सारी सम्पत्ति बांट ली वो भी तो उनकी सन्तान हैं। क्यों नहीं दिया उनको उनका हिस्सा! आपके नाम बंगला है, चाचा और पापा के नाम इतना कुछ है सिर्फ नहीं है तो बुआ के नाम।''
'' ये भी बंटवारा करवायेगी, देख लेना। उनकी बात को पत्थर की लकीर मानती है।''
'' वैसे ही मांग लेती। यह बदला किस बात का लिया है।''
'' इतने वर्षों तक मैं ने जो नरक भोगा है। पैसे - पैसे के लिये मोहताज। इतना अपमान कि बासी रोटियां चुराकर नौकर मेरे कमरे में रख जाता था। उसको दया थी मेरे लिये। सिर्फ मालूम नहीं था तो आप लोगों को। मेरे सामने दो ही रास्ते हैं - आत्महत्या या मेरा अपना हिस्सा!''
'' कितनी टुच्ची निकली यह तो।''
'' दिल में पाप था। यही बात कह देती।''हर तीखा शब्द भाले की तरह शैला के हृदय को भेद कर लहुलुहान करता जाता।
वे इस खबर को पढक़र आसमान से गिर पडी थीं। जिस सम्पत्ति से उन्हें अटूट मोह था। वह सम्पत्ति कोई कानूनन मांगे। कितनी चालाक निकलीं। कोई कहेगा कि ऐसी सीधी दिखने वाली लडक़ी ऐसा कदम उठा सकती है? जिन्दगी भर भइया को उल्लू बनाती। जान छिडक़ने का नाटक करती रही। अब देखो नोटिस भिजवा दिया।
'' आप लोगों ने इतना पैसा होते हुए भी सारी सम्पत्ति बांट ली वो भी तो उनकी सन्तान हैं। क्यों नहीं दिया उनको उनका हिस्सा! आपके नाम बंगला है, चाचा और पापा के नाम इतना कुछ है सिर्फ नहीं है तो बुआ के नाम।''
'' ये भी बंटवारा करवायेगी, देख लेना। उनकी बात को पत्थर की लकीर मानती है।''
'' वैसे ही मांग लेती। यह बदला किस बात का लिया है।''
'' इतने वर्षों तक मैं ने जो नरक भोगा है। पैसे - पैसे के लिये मोहताज। इतना अपमान कि बासी रोटियां चुराकर नौकर मेरे कमरे में रख जाता था। उसको दया थी मेरे लिये। सिर्फ मालूम नहीं था तो आप लोगों को। मेरे सामने दो ही रास्ते हैं - आत्महत्या या मेरा अपना हिस्सा!''
'' कितनी टुच्ची निकली यह तो।''
'' दिल में पाप था। यही बात कह देती।''हर तीखा शब्द भाले की तरह शैला के हृदय को भेद कर लहुलुहान करता जाता।
'' पापा, आपकी बहन ने नोटिस भेजा है। मेरी बहन भी वही करेगी देख लेना। शैला दी, तुम तो कह देना, मैं यूं ही दे दूंगा। दान कर दूंगा।'' घर में हंसी मजाक के बहाने उन्हें उछालने का कोई मौका नहीं छोडा जाता। शैला उठकर चल देती थी।
और आज इतने वर्षों बाद! अब शैला शादीशुदा है। दो बच्चों की मां। मायके में आयी है, एक महीने के लिये। पति तीन महीने के लिये विदेश गये हैं।
उन्होंने लिफाफा उठाया और आर - पार देखने लगीं। लेकिन कागज मोटा था। बाहर से चमकीला। तह किये गये पेपर्स का आकार बाहर से दीख रहा था।
'' क्या वक्त हो गया? क्यों नहीं आई शैला?''
'' तुम्हें इतनी उत्सुकता क्यों है?''
'' फिर कोई नोटिस तो नहीं है। शैला के नाम!'' व्यंग्य से भरा एक और बाण!
'' पागल हो क्या!''
'' क्यों अब भी विश्वास टूटा नहीं!'' तीर तीक्ष्ण था जहर में डूबा! पति भुनभुनाते हुए उठकर बाहर निकल गये। काश! कभी अपनी दृष्टि से सारी स्थितियों को देखा होता। भाई को अपना सम्बल मानती थीं। अपना अभिमान। अपना आत्मिक बल। किसी और की आंखों से नहीं,अपनी आंखों से देखना। परायी आंखें कभी अपनी नहीं हो सकतीं। यही लिखा था बुआ ने पापा को।
'' क्या वक्त हो गया? क्यों नहीं आई शैला?''
'' तुम्हें इतनी उत्सुकता क्यों है?''
'' फिर कोई नोटिस तो नहीं है। शैला के नाम!'' व्यंग्य से भरा एक और बाण!
'' पागल हो क्या!''
'' क्यों अब भी विश्वास टूटा नहीं!'' तीर तीक्ष्ण था जहर में डूबा! पति भुनभुनाते हुए उठकर बाहर निकल गये। काश! कभी अपनी दृष्टि से सारी स्थितियों को देखा होता। भाई को अपना सम्बल मानती थीं। अपना अभिमान। अपना आत्मिक बल। किसी और की आंखों से नहीं,अपनी आंखों से देखना। परायी आंखें कभी अपनी नहीं हो सकतीं। यही लिखा था बुआ ने पापा को।
ठीक चार बजे शैला आ गयी।
'' देखो, सामने क्या रखा है? खोलो तो सही! '' उनकी उत्कण्ठा का बांध टूटा जा रहा था।
'' आपने नाम तो पढ लिया होगा फिर आपको! '' कहते - कहते रुक गयी शैला।
'' देखो, सामने क्या रखा है? खोलो तो सही! '' उनकी उत्कण्ठा का बांध टूटा जा रहा था।
'' आपने नाम तो पढ लिया होगा फिर आपको! '' कहते - कहते रुक गयी शैला।
शैला ने लिफाफे को फूलों की तरह पकड क़र देखा कि दिल भर आया। कई लहरें उठने लगीं भीतर। आंखों में उमडते आंसूं झर - झर बह उठे। महीनों - सालों का रुका प्रवाह पिघलने लगा। बहते आंसुओं के बीच पढने लगी - '' प्रिय शैला, मैं अपनी वसीयत भेज रही हूं,तुम्हारे नाम। जो मांगा था वो मेरा हक था। अपने अस्तित्व के लिये, अपने प्राणों के लिये उस समय उसी की जरूरत थी - एक ही मां - बाप की सन्तान में इतना अन्तर। वही नाम, कुल, गोत्र, वही पहचान। खून एक होता तो उसकी चीजें क्यों अलग हो जाती हैं? वही द्वन्द्व था जो सामने आया था। मेरी प्यारी बच्ची, मेरी तो उम्र निकल गयी, बेवा जीवन जीते हुएजो कोई भी एक क्षण जीना नहीं चाहेगा।काश मेरे पिता और भाई खडे हो जाते। वो तो नहीं हुए। मगर तुम खडी हुईं थीं। तुम्हारा वह आत्मिक लगाव, वो चिन्ता मेरी प्यारी रानी, तुम्हीं को क्यों! क्योंकि तुम भी उस घर की बेटी हो। उस घर की बेटियां हर बात में शामिल रही हैं, दु:ख में, बीमारी में सिर्फ शामिल नहीं हो पातीं तो जमीन के टुकडों और घर के आंगनों में। वे जमीन के टुकडे और आंगन किसी के जीवन को संभाल सकते हैं, सहारा बन सकते हैं जो वहां बेकार पडे होते हैं। काश कोई समझ पाता।''
उसके बहते आंसुओं और बढती सिसकियों को सुनकर वे तमतमा उठीं।
'' देखा इतने साल बाद पत्र लिखा भी तो रुलाने के लिये। इस औरत ने कभी मेरी बच्ची को चैन से नहीं रहने दिया, न हंसने दिया।भूत की तरह पीछा करती रही। दिखाओ क्या लिखा है? '' झपट कर उन्होंने वे पेपर छीन लिये जिनको देखने के लिये वे सुबह से आतुर थीं। उन्हें लगा चारों तरफ की दीवारें, वृक्ष, पत्ते, आसमान घूम रहे हैं। उनका दिल ऊंचे झूले से उतरते वक्त जैसे धसकता हो, धसकता जा रहा है।
'' देखा इतने साल बाद पत्र लिखा भी तो रुलाने के लिये। इस औरत ने कभी मेरी बच्ची को चैन से नहीं रहने दिया, न हंसने दिया।भूत की तरह पीछा करती रही। दिखाओ क्या लिखा है? '' झपट कर उन्होंने वे पेपर छीन लिये जिनको देखने के लिये वे सुबह से आतुर थीं। उन्हें लगा चारों तरफ की दीवारें, वृक्ष, पत्ते, आसमान घूम रहे हैं। उनका दिल ऊंचे झूले से उतरते वक्त जैसे धसकता हो, धसकता जा रहा है।
'' मम्मी, यह तुम्हारी समझ में नहीं आएगा।'' कहकर शैला ने पत्र उनके हाथ से छीन लिया।
कठोर तथा तीक्ष्ण आंखों में पहली बार शैला ने आंसुओं को उमडते देखा लेकिन अब आंसुओं की जरूरत नहीं थी।
कठोर तथा तीक्ष्ण आंखों में पहली बार शैला ने आंसुओं को उमडते देखा लेकिन अब आंसुओं की जरूरत नहीं थी।
शाम को जब पापा लौटकर आये तो देखा बैग बाहर रखे हैं। उन्होंने हैरानी से पूछा, '' क्या बात है? क्यों जा रही हो?''
'' बुआ की तरह जिद्दी जो है। बात नहीं मानती। जाओ, हमारा क्या? देखते हैं, कब तक नहीं आओगी अपनी बुआ की तरह।'' वे बोले जा रही थीं।
'' बुआ की तरह जिद्दी जो है। बात नहीं मानती। जाओ, हमारा क्या? देखते हैं, कब तक नहीं आओगी अपनी बुआ की तरह।'' वे बोले जा रही थीं।
और शैला अपना सामान गाडी में रख रही थी। वसीयत के पेपर टेबल पर पडे फ़डफ़डा रहे थे।
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